Saturday, September 14, 2019

शिक्षण प्रक्रिया में श्रव्य-साधन / Audio Aids in the Teaching Process

शिक्षण प्रक्रिया में श्रव्य-साधन / Audio Aids in the Teaching Process

शिक्षण प्रक्रिया में श्रव्य-साधन / Audio Aids in the Teaching Process

    शिक्षण प्रक्रिया में श्रव्य-साधन के अन्तर्गत उन सामग्रीयों को रखा जाता है, जिनके द्वारा सुनकर ज्ञान प्राप्त हो सकता है, जैसे- फोनोग्राफ रिकॉर्ड, रेडियो प्रसारण तथा मैग्नेटिक टेपरिकॉर्डर आदि। शिक्षण में श्रव्य साधन तीन प्रकार से सहायक होते है-

  • रेडियो 
  • टेप रिकॉर्डर 
  • ग्रामोफोन 

 रेडियो 

रेडियो शिक्षा प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण अंग है। भारत में वर्ष 1936 में सर्वप्रथम आकाशवाणी से समाचार बुलेटिन का प्रसारण हुआ था। वर्ष 1957 में विविध भारती की शुरुआत हुई थी।

 टेप रिकॉर्डर 

टेपरिकॉर्डर के माध्यम से किसी भी विषय-वस्तु को विद्यार्थी के लिए आवश्यकतानुसार प्रस्तुत किया जा सकता है।
यह निदानात्मक और उपचरात्मक दोनों ही शिक्षण विधियों में प्रयुक्त किया जा सकता है।

 ग्रामोफोन 

ग्रामोफोन रेडियो की तरह ही शिक्षण का एक माध्यम है। ग्रामोफोन के द्वारा छात्रों को उच्चारण के शुद्धिकरण में सहायता मिलती है।

----------------------------
-------------------
------------

Friday, September 13, 2019

शिक्षण सहायक सामग्री / Teaching Aids

शिक्षण सहायक सामग्री / Teaching Aids

शिक्षण सहायक सामग्री / Teaching Aids

शिक्षण सहायक सामग्री की परिभाषायें - 

  1. सहायक सामग्री वह सामग्री है जो कक्षा में या अन्य शिक्षण परिस्थितियों में लिखित या बोली गई पाठ्य सामग्री को समझने में सहायता प्रदान करती है - डेण्ड के अनुसार 
  2. कोई भी ऐसी सामग्री जिसके माध्यम से शिक्षण प्रक्रिया को उद्दीप्त किया जात सके अथवा श्रवणेन्द्रिय संवेदनाओं के द्वारा आगे बढ़ाया जा सके वह सहायक सामग्री कहलाती है - कार्टर ए गुड 

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि "शिक्षण सहायक सामग्री वे उपकरण तथा युक्तियाँ है जिनके प्रयोग से छात्रों और समूहों के मध्य प्रभावशाली ढंग से ज्ञान का संचार होता है।

शिक्षण सहायक सामग्री को परम्परागत रूप से तीन भागों में विभाजित किया गया है-

  • श्रव्य साधन 
  • दृश्य साधन 
  • श्रव्य-दृश्य साधन 

श्रव्य साधन 

श्रव्य साधन श्रेणी की सहायक सामग्री में  उनको रखा जाता है, जिसके द्वारा सुनकर ज्ञान प्राप्त किया जा सके। शिक्षण प्रक्रिया में श्रव्य साधन मुख्यतः तीन प्रकार के होता है -
1- रेडियो
2- टेप रिकार्डर
3- ग्रामोफोन

दृश्य साधन 

दृश्य साधन श्रेणी में ऐसी सामग्रीयों को रखा जाता है, जिनको देखकर ज्ञान प्राप्त होता है। शिक्षण प्रक्रिया में दृश्य साधन मुख्यतः सात प्रकार के होते है -
1- रेखाचित्र एवं चार्ट
2- मानचित्र एवं ग्लोब
3- प्रतिमान
4- स्लाइड
5- ग्राफ
6- फ्लैश कार्ड
7- पत्र-पत्रिका

श्रव्य-दृश्य सामग्री 

श्रव्य-दृश्य सामग्री के अन्तर्गत वे साधन रखे जाते है, जिनके द्वारा छात्र देखकर और सुनकर दोनों प्रकार से ज्ञान प्राप्त करते है। श्रव्य-दृश्य सामग्री भी सात परकर की होती है -
1- टेलीविजन
2- कम्प्यूटर
3- मल्टीमीडिया
4- श्यामपट्ट
5- प्रदर्शन बोर्ड
6- चलचित्र अथवा सिनेमा
7- संवाद सामग्री

सहायक सामग्री के उद्देश्य

  1. छात्रों में पाठ के प्रति रूचि जागृत करना। 
  2. छात्रों में तथ्यात्मक सूचनाओं को रोचक ढंग से प्रस्तुत करना।
  3. शिक्षण कार्यों में सीखने की गति में सुधार करना। 
  4. छात्रों को अधिक से अधिक क्रियाशील बनाना। 
  5. छात्रों की अभिरूचियों पर आशानुकूल प्रभाव डालना। 
  6. तीव्र एवं मंद बुद्धि छात्रों को योग्यतानुसार शिक्षा देना। 
  7. जटिल विषयों को सरल रूप में प्रस्तुत करना। 
  8. बालक का ध्यान पाठ की ओर केन्द्रित करना। 
  9. अमूर्त पदार्थो को मूर्त रूप देना। 
  10. छात्रों की निरीक्षण शक्ति का विकास करना। 
-------------------------------------


वीडियो अपडेट के लिए यूट्यूब चैनल अभी अभी जुड़े 

👉🏻👉🏻  👈🏻👈🏻


सम्बन्धित अन्य महत्वपूर्ण लेख 👇



Monday, September 9, 2019

शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारक तत्व / Factors Affecting Teaching

शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारक तत्व / Factors Affecting Teaching

शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारक तत्व / Factors Affecting Teaching
   शिक्षण एक जटिल एवं सतत् प्रक्रिया है। शिक्षण को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक तत्वों में शिक्षक एवं शिक्षार्थी मुख्य भूमिका में होते है। इनके अतिरिक्त शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारक तत्वों की सूची निम्नलिखित है -
  1. शिक्षण कौशल 
  2. शैक्षणिक योग्यता 
  3. विषय-वस्तु की विशेषज्ञता 
  4. शिक्षक का अनुभव एवं प्रबन्धन 
  5. शिक्षक एवं शैक्षणिक संस्थानों में समन्वय 
  6. कार्य का विश्लेषण 

1- शिक्षण कौशल

कुछ शिक्षकों में शिक्षण कौशल जन्मजात होता है, परन्तु अधिकतर शिक्षकों को यह कौशल अर्जित करना पड़ता है। कुछ प्रमुख शिक्षण कौशल है -
  • प्रश्न पूछना 
  • प्रयोग करना 
  • व्याख्यान देना 
  • समस्या का निदान करना 

2- शैक्षणिक योग्यता 

शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक की शैक्षणिक योग्यता बहुत महत्वपूर्ण होती है। एक योग्य शिक्षक ही शिक्षण की प्रक्रिया को अधिक प्रभावी बना सकता है। एक कुशल शिक्षक के लिए निम्नलिखित योग्यताएं निर्धारित की जाती है -
  • JBT
  • B.Ed
  • CTET
  • NET

3- विषय-वस्तु की विशेषज्ञता

शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक है कि शिक्षक को उसके विषय का विशेष ज्ञान प्राप्त हो, यदि शिक्षक अपनी विषय-वस्तु का विशेषज्ञ नहीं है तो शिक्षण प्रभावी नहीं होता।

4- शिक्षक का अनुभव एवं प्रबन्धन

एक शिक्षक सदैव एक शिक्षार्थी भी होता है। वह अपने ज्ञान एवं अनुभव से शिक्षार्थी के प्रश्नों के उत्तर देकर उसकी जिज्ञासा को शान्त कर पता है।

5- शिक्षक एक शैक्षणिक संस्थानों में समन्वय

एक शिक्षक के लिए आवश्यक है कि वह अपनी शिक्षण प्रक्रिया को एक स्वतन्त्र वातावरण में सम्पन्न कराए। इसके लिए शिक्षक का स्वयं का प्रबन्धन एवं शैक्षणिक संस्थानों में समन्वय रखना बहुत महत्वपूर्ण होता है।

6- कार्य का विश्लेषण

शिक्षण वह प्रक्रिया है जिसमे शिक्षक एवं शिक्षार्थी दोनों ही एक दूसरे पर प्रभाव डालते है। शिक्षक को आवश्यक है की अपने शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए अपने कार्य के साथ-साथ शिक्षार्थियों के कार्यों का भी विश्लेषण करे।
-------------------------------------



वीडियो अपडेट के लिए यूट्यूब चैनल अभी अभी जुड़े 

👉🏻👉🏻  👈🏻👈🏻


सम्बन्धित अन्य महत्वपूर्ण लेख 👇



Saturday, August 31, 2019

वैयक्तिक भिन्नता / Individual Variation

वैयक्तिक भिन्नता / Individual Variation

वैयक्तिक भिन्नता / Individual Variation

    "भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में उनके स्वभाव, बुद्धि, शरीरिक-मानसिक क्षमता के अन्तर को वैयक्तिक भिन्नता कहते है"। शिक्षण के क्षेत्र में वैयक्तिक भिन्नता का अध्ययन बहुत महत्वपूर्ण होता है। वैयक्तिक भिन्नता के विचार का शिक्षण में प्रयोग सर्वप्रथम फ्रांसीसी मनोवैज्ञानिक गाल्टन ने किया था। वैयक्तिक भिन्नता के सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिकों ने कुछ परिभाषाएं दी है जो इस प्रकार है-
स्किनर के अनुसार, “वैयक्तिक भिन्नता से हमारा तात्पर्य व्यक्तित्व के उन सभी पहलुओं से है, जिनका मापन व मूल्यांकन किया जा सकता है।”
जेम्स ड्रेवर के अनुसार, “कोई व्यक्ति अपने समूह के शारीरिक तथा मानसिक गुणों के औसत से जितनी भिन्नता रखता है, उसे वैयक्तिक भिन्नता कहते है।”
टॉयलर के अनुसार, “शरीर के रूप-रंग, आकार, कार्य, गति, बुद्धि, ज्ञान, उपलब्धि, रुचि, अभिरुचि आदि लक्षणों में पाई जाने वाली भिन्नता को वैयक्तिक भिन्नता कहते है।”

वैयक्तिक भिन्नता के प्रकार 

वैयक्तिक भिन्नता के प्रकार निम्नलिखित है-
  • भाषायी भिन्नता 
  • लैंगिक भिन्नता 
  • बौद्धिक भिन्नता 
  • पारिवारिक एवं सामुदायिक भिन्नता 
  • जातिगत भिन्नता 
  • संवेगिक भिन्नता 
  • धार्मिक भिन्नता 
  • शारीरिक भिन्नता 
  • अभिवृतिक भिन्नता 
  • व्यक्तित्व भिन्नता 
  • गत्यात्मक कौशल पर आधारित भिन्नता 

वैयक्तिक भिन्नता के कारण  

वैयक्तिक भिन्नता होने के निम्नलिखित कारण है-
  • वंशानुक्रम 
  • वातावरण या परिवेश 
  • आयु एवं बुद्धि 
  • परिपक्वता 
  • लैंगिक भिन्नताएं 

वैयक्तिक भिन्नता को जानने की विधियाँ

वैयक्तिक भिन्नताओं को जानने की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित  है-
  • बुद्धि परीक्षण 
  • उपलब्धि परीक्षण 
  • संवेग परीक्षण 
  • अभिक्षमता परीक्षण 
  • अभिरुचि परीक्षण 
  • व्यक्तित्व परीक्षण 

शिक्षा में वैयक्तिक भिन्नता का स्वरूप   

शिक्षा के क्षेत्र में वैयक्तिक भिन्नता महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
वैयक्तिक भिन्नता के आधार पर शिक्षण प्रक्रिया में निम्नलिखित बातों का निर्धारण आसानी से किया जाता है-
  1. शिक्षा के स्वरूप का निर्धारण  
  2. पाठ्यक्रम का  निर्धारण 

----------------------------------
---------------------
--------------

Friday, August 30, 2019

वयस्क अध्येता Adult Leaner

वयस्क अध्येता Adult Leaner

वयस्क अध्येता Adult Leaner

     18 वर्ष से ऊपर के व्यक्ति को वयस्क अवस्था में रखा जाता है। वयस्क अध्येता की प्रमुख विशेषताओं को हम निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर समझ सकते है-

  • शैक्षिक 
  • सामाजिक 
  • भावनात्मक 
  • संज्ञानात्मक 

शैक्षिक

    वयस्क अध्येता में स्वयं ही परीक्षण, निरीक्षण, विचार और तर्क करने की प्रवृत्ति का उचित विकास होता है। इस अवस्था में वयस्क अध्येता को जिम्मेदारी का एहसास होता है। अतः वयस्क अध्येता शिक्षण कार्य को अपनी कर्मनिष्ठा तथा उत्तरदायित्व की भावना से करने के प्रति समर्पित होता है।

सामाजिक 

    वयस्क अध्येता सामाजिक परिवेश में अच्छी तरह से समन्वित रहता है। वह सामाजिक रीति-रिवाजों, परम्पराओं आदि को जनता है। वयस्क अध्येता सामाजिक जिम्मेदारी को निभाते हुए शिक्षण कार्य को निष्ठापूर्वक करने में सक्षम होता है।

भावनात्मक 

    वयस्क अध्येता भावनात्मक रूप से सही निर्णय लेने तथा किसी भी कार्य को करने में सक्षम होता है। वह तर्क के माध्यम से सभी निष्कर्ष प्राप्त करता है। अतः शिक्षण इसकी तार्किक एवं भावनात्मक प्रवृत्ति के विकास को और अधिक उन्नत करती है।

संज्ञानात्मक 

    वयस्क अध्येता के मस्तिष्क का विकास लगभग पूर्ण होता है। वह कल्पना, मनोविज्ञान, तथ्यहीन तर्क आदि के समाधान में समर्थ होता है। अतः वयस्क अध्येता उचित संज्ञानात्मक निर्णय लेकर उचित निष्कर्ष प्रदान करता है।

----------------------------------
--------------------
-----------


वीडियो अपडेट के लिए यूट्यूब चैनल अभी अभी जुड़े 

👉🏻👉🏻  👈🏻👈🏻


Sunday, August 25, 2019

किशोर अध्येता Teenager Learner


किशोर अध्येता Teenager Learner

किशोर अध्येता Teenager Learner

    12 वर्ष से 18 वर्ष तक के आयु के बालक को किशोर अवस्था में रखा जाता है। किशोर अध्येता की प्रमुख विशेषताओं को हम निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर समझ सकते है-

  • शैक्षिक 
  • सामाजिक 
  • भावनात्मक 
  • संज्ञानात्मक 

शैक्षिक

     किशोर अवस्था अध्येता में स्वयं परीक्षण, निरीक्षण, विचार और तर्क करने की प्रवृत्ति होती है। इसी लिए इस स्तर पर शिक्षण का स्वरूप भी मानसिक विकास, शारीरिक विकास एवं व्यक्तिगत भिन्नता के अनुरूप होना चाहिए।

सामाजिक 

    किशोर अवस्था में अध्येता को जीवन में नए-नए अनुभव का ज्ञान होता है जिससे उसमें इच्छा, निराशा, असफलता आदि का संचार होता है। निराशा और असफलता आदि के कारण ही उसमें आपराधिक प्रवृत्ति का जन्म होता है। इसी अवस्था में ही उसमें समाजसेवा का भाव भी उत्पन्न होता है। अतः शिक्षण की इस अवस्था में उसे सही मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।

भावनात्मक 

     किशोर अवस्था में अध्येता भावनात्मक रूप से किसी भी तथ्य को समझने में जल्दी करते है। कल्पना, सत्य व असत्य, नैतिक व अनैतिक का सही ज्ञान न होने के कारण वह गलत प्रवृत्तियों का शिकार भी हो जाते है। अतः इस स्तर पर शिक्षण का प्रारूप सही मार्गदर्शन वाला होना चाहिए।

संज्ञानात्मक 

    किशोर अवस्था में अध्येता के मस्तिष्क का विकास लगभग सभी दिशाओं में होता है। वह कल्पनाओं, नैतिक तथा अनैतिक विषयों के बारें मे सजग रहता है। अतः शिक्षण के इस स्तर पर किशोर अध्येता को संज्ञानात्मक प्रवृत्ति का ज्ञान आवश्यक हो जाता है।


--------------------------------------
-----------------------
--------------

Sunday, August 18, 2019

अध्येता या अधिगमकर्ता Learner

अध्येता या अधिगमकर्ता Learner

अध्येता या अधिगमकर्ता Learner

     अध्येता का शाब्दिक अर्थ होता है- “अध्ययन करने वाला”। इसके अलावा अध्येता को शिक्षार्थी, विद्यार्थी या अधिगमकर्ता भी कहते है, जो कि शिक्षण का केन्द्रबिन्दु होता है। प्रारम्भ में अध्येता अपरिपक्व अवस्था में होता है, किन्तु बाद में धीरे-धीरे वह सामाजिक एवं सांस्कृतिक गुणों के माध्यम से परिपक्व अवस्था में आ जाता है। अध्येता में अनुशासन की प्रवृत्ति शिक्षण के माध्यम से ही विकसित होती है और वह धीरे-धीरे एक आदर्श नागरिक बन कर राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

अध्येता की मुख्य विशेषताएं 

  • अध्येता ज्ञान की प्राप्ति करता है।
  • अध्येता स्मरण एवं अनुभव को संगठित व परिष्कृत करता है।   
  • अध्येता के अधिगम की प्रेरणा, स्वाभाविक रूचियाँ, अभिरुचियाँ, एवं अभिवृत्तियों को निर्धारित करता है।  
  • अध्येता अधिगम प्रक्रिया को सफल अथवा असफल करता है। 
  • अध्येता अधिगम प्रक्रिया में व्यक्तिगत एवं सामाजिक आवश्यकताओं को जागृत करता है। 
  • अध्येता राष्ट्र के निर्माण एवं समाज के चारित्रिक सद्गुणों के विकास की अभिवृद्धि करता है।
  • अध्येता प्रशिक्षण या निर्देशात्मक योजना निर्माण में सहायक तत्व की तरह कार्य करता है।
---------------
--------
---

प्राकृतिक आपदा से बचाव

Protection from natural disaster   Q. Which one of the following is appropriate for natural hazard mitigation? (A) International AI...