सांख्य दर्शन / सांख्य सूत्र दर्शन / कपिल मुनि का दर्शन / अंक दर्शन

सांख्य दर्शन का सामान्य परिचय एवं उसका साहित्य सांख्य दर्शन भारतीय दर्शन की चिन्तन परम्परा में प्राचीनतम दर्शन है। इस दर्शन का उल्लेख पुराणों , महाभारत , रामायण , श्रुति एवं स्मृति में है।गीता में भी सांख्य एवं योग दर्शन का उल्लेख मिलता है।अन्य दर्शनों की तुलना में यह दर्शन सर्वाधिक प्रभावशाली है सांख्य के बारे में उक्ति है कि “नास्ति सांख्य समं ज्ञानं ' अर्थात् सांख्य के समान और कोई ज्ञान नहीं है। सांख्य दर्शन के प्रणेता महर्षि कपिल हैं। सांख्य दर्शन का मूल ग्रन्थ महर्षि कपिल का ' तत्त्व समास ' है।फिर उन्होंने सांख्यमत को विस्तारपूर्वक समझाने की दृष्टि से ' सांख्य सूत्र ' नामक विशद् ग्रन्थ की रचना की।वर्तमान में ईश्वरकृष्ण की ' सांख्यकारिका ' ही उपलब्ध है। ईश्वरकृष्ण आचार्य पंचशिख के शिष्य थे।सांख्यकारिका ही सांख्य दर्शन का आधार है। सांख्य का शाब्दिक अर्थ संख्या से है।विद्वानों के विचार हैं कि इस दर्शन में ऐसे तत्त्वों की संख्या गिनी जाती है , जिनका ज्ञान हमें मोक्ष दिलाने वाला है , इसलिए इसे सांख्य कहते हैं। सांख्य का ए...