12 वर्ष से 18 वर्ष तक के आयु के बालक को किशोर अवस्था में रखा जाता है। किशोर अध्येता की प्रमुख विशेषताओं को हम निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर समझ सकते है-
- शैक्षिक
- सामाजिक
- भावनात्मक
- संज्ञानात्मक
शैक्षिक
किशोर अवस्था अध्येता में स्वयं परीक्षण, निरीक्षण, विचार और तर्क करने की प्रवृत्ति होती है। इसी लिए इस स्तर पर शिक्षण का स्वरूप भी मानसिक विकास, शारीरिक विकास एवं व्यक्तिगत भिन्नता के अनुरूप होना चाहिए।
सामाजिक
किशोर अवस्था में अध्येता को जीवन में नए-नए अनुभव का ज्ञान होता है जिससे उसमें इच्छा, निराशा, असफलता आदि का संचार होता है। निराशा और असफलता आदि के कारण ही उसमें आपराधिक प्रवृत्ति का जन्म होता है। इसी अवस्था में ही उसमें समाजसेवा का भाव भी उत्पन्न होता है। अतः शिक्षण की इस अवस्था में उसे सही मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।
भावनात्मक
किशोर अवस्था में अध्येता भावनात्मक रूप से किसी भी तथ्य को समझने में जल्दी करते है। कल्पना, सत्य व असत्य, नैतिक व अनैतिक का सही ज्ञान न होने के कारण वह गलत प्रवृत्तियों का शिकार भी हो जाते है। अतः इस स्तर पर शिक्षण का प्रारूप सही मार्गदर्शन वाला होना चाहिए।
संज्ञानात्मक
किशोर अवस्था में अध्येता के मस्तिष्क का विकास लगभग सभी दिशाओं में होता है। वह कल्पनाओं, नैतिक तथा अनैतिक विषयों के बारें मे सजग रहता है। अतः शिक्षण के इस स्तर पर किशोर अध्येता को संज्ञानात्मक प्रवृत्ति का ज्ञान आवश्यक हो जाता है।
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