हण्ट शिक्षण मॉडल Hunt Teaching Model

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हण्ट शिक्षण मॉडल Hunt Teaching Model

हण्ट शिक्षण मॉडल Hunt Teaching Model

      हण्ट शिक्षण मॉडल को चिन्तन  स्तर की शिक्षण व्यवस्था भी कहते है। चिन्तन के स्तर पर शिक्षक अपने छात्रों में चिन्तन, तर्क तथा कल्पना शक्ति को बढ़ता है , जिससे छात्र इन उपगमों के माध्यम से अपनी समस्या का समाधान कर सके। इस स्तर पर शिक्षण में स्मृति तथा बोध दोनों स्तरों का शिक्षण निहित होता है। इसके बिना चिन्तन-स्तर का शिक्षण सफल नहीं हो सकता।

     चिन्तन स्तर का शिक्षण समस्या केन्द्रित होता है, इसमें छात्र को मौलिक चिन्तन करना होता है। इस स्तर पर छात्र विषय-वस्तु के सम्बन्ध में आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाते है। इस स्तर पर छात्र सीखे हुये तथ्यों तथा सामान्यीकरण की जाँच करता है और नवीन तथ्यों की खोज करता है।

     इस शिक्षण के सम्बन्ध में विग्गी का कथन है कि "चिन्तन स्तर के शिक्षण में कक्षा में एक ऐसा वातावरण विकसित किया जाता है, जो अधिक सजीव, प्रेरणादायक, सक्रिय, आलोचनात्मक, संवेदनशील हो और नवीन एवं मौलिक चिन्तन को खुला अवसर प्रदान करे। इस प्रकार का शिक्षण बोध स्तर के शिक्षण की अपेक्षा अधिक कार्य-उत्पादक को बढ़ावा देता है।"

     यह शिक्षण का सर्वोत्त्म स्तर है, जिसमें छात्र अपनी अभिव्यक्ति, धारणा, विचार, मान्यता तथा ज्ञान के अनुसार समस्या का समाधान, विचार एवं तर्क के द्वारा करता है तथा नवीन ज्ञान की खोज भी करता है। इस स्तर पर शिक्षक छात्रों के बौद्धिक व्यवहार के विकास के लिए अवसर प्रदान करता है और सृजनात्मक क्षमताओं के विकास में सहायक होता है। चिन्तन स्तर का शिक्षण स्मृति तथा बोध स्तर के शिक्षण से भिन्न होता है, परन्तु चिन्तन स्तर के शिक्षण के लिए स्मृति तथा बोध का स्तर, शिक्षण स्तर पहले होना आवश्यक है। हण्ट को चिन्तन स्तर के शिक्षण का प्रवर्तक माना जाता है।

चिन्तन स्तर के शिक्षण प्रतिमान के प्रारूप का अध्ययन चार सोपनों में किया जाता है-
  1. उद्देश्य
  2. संरचना
  3. सामाजिक प्रणाली
  4. मूल्यांकन प्रणाली

उद्देश्य

चिन्तन स्तर के शिक्षण के प्रमुख तीन उद्देश्य होते है-
  1. समस्या, समाधान की क्षमताओं का छात्रों में विकास करना। 
  2. छात्रों में आलोचनात्मक तथा सृजनात्मक चिन्तन का विकास करना। 
  3. छात्रों की मौलिक तथा स्वतन्त्र चिन्तन क्षमताओं का विकास करना। 

संरचना

चिन्तन स्तर के शिक्षण की संरचना का प्रारूप समस्या की प्रकृति पर निर्धारित किया जाता है। समस्याएँ दो प्रकार की होती है- व्यक्तिगत एवं सामाजिक। व्यक्तिगत समस्या के समाधान के लिए प्रमुख दो आयामों का अनुसरण किया जाता है- डी. बी. की समस्यात्मक परिस्थिति एवं कर्ट लेविन की समस्यात्मक परिस्थिति। 

डी. बी. की समस्यात्मक परिस्थिति

डी. बी. की व्यक्तिगत समस्या को निम्न दो परिस्थितियों में प्रस्तुत किया जाता है-
  1. पथ-रहित परिस्थिति
  2. दो नोक वाली पथ परिस्थिति

1- पथ-रहित परिस्थिति

     छात्र जब अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करता है और मार्ग में बाधाएँ आ जाती है तब उसे तनाव हो जाता है, इसलिए वह उन बाधाओं पर विजय पाने के लिए समाधान सोचता है।

2- दो नोक वाली पथ परिस्थिति

जब छात्र को दो लक्ष्य समान रूप से आकर्षित करते है, तब उसके सामने यह समस्या उत्पन्न होती है।

कर्ट लेविन की समस्यात्मक परिस्थिति

     कर्ट लेविन का विचार है कि हर व्यक्ति का कोई न कोई लक्ष्य होता है, जिससे उसका व्यवहार नियंत्रित होता है।
प्रत्येक व्यक्ति का अपना जीवन क्षेत्र होता है, जिसकी प्रकृति सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक होती है। व्यक्ति और लक्ष्य की स्थिति तनाव उत्पन्न करती है, जिससे समस्यात्मक परिस्थिति बन जाती है। कर्ट लेविन ने तनाव पथ-परिस्थिति के तीन रूप प्रस्तुत किए है-
  1. धनात्मक-आकर्षण
  2. ऋणात्मक-आकर्षण
  3. धनात्मक-ऋणात्मक आकर्षण

सामाजिक प्रणाली

     चिन्तन स्तर की सामाजिक प्रणाली में छात्र अधिक सक्रिय रहता है, और कक्षा का वातावरण खुला और स्वतंत्र होता है। सीखने की परिस्थितियाँ अधिक आलोचनात्मक होती है। इस स्तर पर छात्र की स्वतः अभिप्रेरण का महत्व अधिक होता है। इस स्तर पर छात्र समस्या के प्रति जितना अधिक संवेदनशील होगा, उतना ही मौलिक चिन्तन का अधिक विकास होगा। इस स्तर पर शिक्षक का कार्य छात्र की आकांक्षा स्तर को ऊपर उठाना होता है। इस स्तर पर सामाजिक अभिप्रेरण का विशेष महत्व है क्योंकि इसी से छात्र में अध्ययन के प्रति लगन उत्पन्न होती है। चिन्तन स्तर पर शिक्षक का स्थान गौण होता है, इसलिए इस स्तर पर शिक्षण के लिए वाद-विवाद तथा सेमिनार आदि विधियाँ अधिक प्रभावशाली होती है।

मूल्यांकन प्रणाली

चिन्तन स्तर के शिक्षण के प्रतिमान का मूल्यांकन करना कठिन होता है। अतः चिन्तन स्तर के शिक्षण की निष्पत्तियों के लिए निबंधात्मक परीक्षा अधिक उपयोगी होती है। चिन्तन स्तर के मूल्यांकन के शिक्षण के लिए वस्तुनिष्ठ परीक्षा अधिक उपयोगी नहीं होती है। इस स्तर की परीक्षा की व्यवस्था करते समय निम्नलिखित पक्षों को ध्यान में रखा जाता है-
  • छात्रों की अभिवृत्तियों तथा विश्वासों का मापन किया जाए। 
  • अधिगम की क्रियाओं में छात्रों की तल्लीनता की भी जाँच की जाए।  
  • छात्रों की समस्या-समाधान प्रवृति का भी मापन किया जाए। 
  • छात्रों की आलोचनात्मक तथा सर्जनात्मक क्षमताओं के विकास का भी मूल्यांकन किया जाए। 
चिन्तन स्तर के शिक्षण के लिए सुझाव
  • इस स्तर में शिक्षण के पूर्व स्मृति तथा बोध-स्तर का ज्ञान अवश्य होना चाहिए। 
  • प्रत्येक संबन्धित सोपान का अनुसरण किया जाना चाहिए।  
  • छात्रों का आकांक्षा स्तर ऊँचा होना चाहिए। 
  • छात्र में सहानुभूति, प्रेम तथा संवेदनशीलता होनी चाहिए। 
  • छात्र को समस्याओं के प्रति तथा अपनी विषय-वस्तु के सम्बन्ध में अधिक संवेदनशील होना चाहिए। 
  • चिन्तन स्तर के शिक्षण का महत्व बताया जाना चाहिए। 
  • ज्ञानात्मक विकास की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। 
  • छात्रों को अधिक से अधिक मौलिक तथा सृजनात्मक चिन्तन के लिए अवसर प्रदान किए जाने चाहिए। 
  • शिक्षण का वातावरण प्रजातान्त्रिक होना चाहिए।  
  • छात्रों को अधिक से अधिक सही चिन्तन के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।  
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