मॉरिसन शिक्षण मॉडल Morrison Teaching Model |
मॉरिसन शिक्षण मॉडल को बोध स्तर या समझ स्तर की शिक्षण व्यवस्था भी कहते है। शिक्षण के क्षेत्र में बोध एक बहुत व्यापक शब्द है। बोध शब्द को मनोवैज्ञानिको तथा शिक्षाशास्त्रीयों ने कई अर्थों में प्रयुक्त किया है, इसलिए शिक्षक भी इस शब्द को अनिश्चित ढंग से प्रस्तुत करता है। शब्दकोश में भी इसके कई अर्थ दिये गए है, जैसे-
- अर्थ का प्रत्यक्षीकरण करना,
- विचारों का बोध होना,
- गहनता से परिचित होना
- प्रकृति एवं स्वभाव को समझना
- भाषा में प्रयुक्त होने वाले अर्थ को समझना तथा तथ्य के रूप में स्पष्ट हो जाना।
- विभिन्न तथ्यों में सम्बन्ध देखना
- तथ्यों को संचालन के रूप में देखना
- तथ्यों के सम्बन्ध तथा संचालन दोनों को समन्वित करना
बोध स्तर के शिक्षण के लिए यह आवश्यक है कि इससे पूर्व स्मृति स्तर पर शिक्षण हो चुका हो। इसके बिना बोध स्तर शिक्षण सफल नहीं हो सकता। शिक्षक इस स्तर पर छात्रों को सामान्यीकरण सिद्धांतों तथा तथ्यों के सम्बन्ध का बोध करता है और शिक्षण प्रक्रिया को अर्थपूर्ण तथा सार्थक बनाता है। बोध स्तर के शिक्षण में शिक्षक छात्रों के समक्ष पाठ्य-वस्तु को इस प्रकार प्रस्तुत करता है कि छात्रों को बोध के लिए अधिक-से अधिक अवसर मिले और छात्रों में अधिक सूझ-बूझ उत्पन्न हो सके। इस प्रकार के शिक्षण में शिक्षक और छात्र दोनों ही सक्रिय रहते है। बोध स्तर का शिक्षण उद्देश्य केन्द्रित तथा सूझ-बूझ से युक्त होता है। मूल्यांकन के लिए निबंधात्मक तथा वस्तुनिष्ठ दोनों प्रकार की प्रणाली का अनुसरण किया जाता है। प्रणाली का प्रयोग तथ्यात्मक तथा विवरणात्मक दोनों प्रकार से किया जाता है। वस्तुनिष्ठ परीक्षणों में प्रत्यास्मरण, अभिज्ञान तथा लघु उत्तर विधियों का प्रयोग किया जाता है।
मॉरिसन का बोध स्तर शिक्षण मॉडल
मॉरिसन ने बोध स्तर के शिक्षण मॉडल को चार चरणों में प्रस्तुत किया है, जिनका विवरण इस प्रकार है-1- उद्देश्य
2- संरचना
3- सामाजिक प्रणाली
4- मूल्यांकन प्रणाली
उद्देश्य
मॉरिसन के प्रतिमान का उद्देश्य प्रत्यय का स्वामित्व प्राप्त करना है। इसमें शिक्षण की क्रियाओं द्वारा तथ्यों के रहने पर ही बल नहीं दिया जाता, अपितु पाठ्य-वस्तु के स्वामित्व पर भी बल दिया जाता है। इस स्तर पर छात्रों के व्यक्तित्व के विकास को भी ध्यान में रखा जाता है।संरचना
मॉरिसन ने बोध स्तर की शिक्षण व्यवस्था को पाँच सोपानों में विभाजित किया है-1- अन्वेषण
2- प्रस्तुतीकरण
3- परिपाक
4- व्यवस्था
5- वर्णन
1- अन्वेषण
इस सोपान में निम्नलिखित क्रियाएँ सम्मिलित की जाती है-- पूर्व ज्ञान का पता लगाने के लिए परीक्षण करना, जिसमें प्रश्न पूछे जाते है। इसे पूर्व व्यवहार भी कहते है।
- शिक्षक पाठ्य-वस्तु का विश्लेषण करके उसके अवयवों को क्रमबद्ध रूप में तर्कपूर्ण ढंग से व्यवस्थित करता है। इसमें यह ध्यान रखना होता है कि पाठ्य-वस्तु का क्रम मनोवैज्ञानिक दृष्टि से वैध हो।
- अन्वेषण की तीसरी क्रिया में शिक्षक यह निश्चित करता है कि नवीन पाठ्य-वस्तु की इकाइयों को किस प्रकार प्रस्तुत किया जाए।
2- प्रस्तुतीकरण
इस सोपान में निम्नलिखित तीन क्रियाएँ शामिल होती है-- शिक्षक को नवीन पाठ्य-वस्तु की छोटी-छोटी इकाइयों में प्रस्तुत करना होता है जिससे कि शिक्षक का छात्रों से सम्बन्ध स्थापित हो सके।
- इस सोपान में शिक्षक को प्रस्तुतीकरण के साथ-साथ छात्रों की समस्याओं का निदान भी करना होता है।
- निदान के आधार पर शिक्षक को यह निर्णय लेना होता है कि पाठ्य-वस्तु की पुनरावृति कितनी बार की जानी चाहिए।
- नवीन पाठ्य-वस्तु की पुनरावृति तीन बार तक की जा सकती है।
3- परिपाक
जब छात्र प्रस्तुतीकरण की परीक्षा को उत्तीर्ण कर ले, तब उन्हें परिपाक की ओर अग्रसर करना चाहिए।इस सोपान की निम्नलिखित विशेषताएँ है-
- परिपाक का लक्ष्य पाठ्य-वस्तु की गहनता पर बल देना है ।
- परिपाक के समय छात्रों की व्यक्तिगत क्रियाओं पर अधिक बल दिया जाता है।
- परिपाक के समय छात्रों को पुस्तकालय तथा प्रयोगशाला में अधिक समय दिया जाता है।
- परिपाक क्रिया के समय छात्र को गृह कार्य दिया जाता है।
- परिपाक के समय शिक्षक का मुख्य कार्य छात्रों को निर्देश देना और उनकी क्रियाओं का पर्यवेक्षण करना है
- परिपाक का मौलिक उद्देश्य छात्रों को सामान्यीकरण के लिए अवसर देना है, जिससे कि वे प्रत्यय पर स्वामित्व प्राप्त कर सके।
- परिपाक के कालांश के अन्त में पाठ्य-वस्तु के स्वामित्व का परीक्षण किया जाए और इसमें असफल छात्रों को पुनः अवसर दिया जाना चाहिए ।
4- व्यवस्था
जब छात्र स्वामित्व परीक्षा में सफल हो जाता है तब परिपाक का कालांश समाप्त हो जाता है।इसके बाद छात्र व्यवस्था कालांश अथवा वर्णन कालांश में प्रवेश करता है। यह पाठ्य-वस्तु की प्रकृति पर निर्भर करता है कि छात्र परिपाक के बाद व्यवस्था की ओर अथवा वर्णन की अग्रसर हो। मॉरिसन के व्यवस्था कालांश से तात्पर्य छात्र द्वारा पाठ्य-वस्तु को अपनी भाषा में लिखित रूप में प्रस्तुत करना से है। बोधगम्यता का यह अन्तिम सोपान स्वामित्व का सोपान माना जाता है। व्यवस्था सोपान में यह सुनिश्चित किया जाता है कि छात्र पाठ्य-वस्तु की प्रमुख इकाइयों को लिखित रूप में बिना किसी सहायता से पुनः प्रस्तुत कर सकता है अथवा नहीं। व्यवस्था स्तर पर विषय-वस्तु को विस्तार रूप से समझने का प्रयास किया जाता है। सीखने की एक इकाई से अनेक तथ्यों का बोध किया जाता है। व्याकरण, गणित और अंकगणित में लिखित रूप में बिना किसी की सहायता के पुनः प्रस्तुतीकरण नहीं होता अतः इस विषय में छात्र व्यवस्था कालांश को छोड़कर सीधे वर्णन कालांश में प्रवेश करता है।
5- वर्णन
वर्णन कालांश में प्रत्येक छात्र को मौखिक रूप में पाठ्य-वस्तु को शिक्षक तथा अपने साथियों के सामने प्रस्तुत करना होता है। इस सोपान में वह सीखे हुये विषय का सारांश सबके सामने प्रस्तुत करता है। मॉरिसन का स्वामित्व, वर्णन की एक विधि है, जिसमें प्रत्येक दिन का वर्णन कालांश में होता है। वर्णन स्तर को लिखित रूप में भी दिया जा सकता है।सामाजिक प्रणाली
बोध स्तर में शिक्षण की सामाजिक प्रणाली विभिन्न सोपनों में बदलती रहती है। सामाजिक प्रणाली के विभिन्न सोपान निम्नलिखित है-- इस प्रणाली में शिक्षक व्यवहार का नियंत्रक होता है।
- शिक्षक एवं छात्र दोनों सक्रिय रहते है।
- छात्र अपने विचार प्रदर्शित कर सकता है।
- इस प्रणाली में बाह्य एवं आंतरिक दोनों प्रकार की प्रेरणाएँ उपयोगी होती है।
- सामाजिक व्यवस्था के प्रथम दो सोपनों में शिक्षक और अन्तिम तीन सोपनों में छात्र-शिक्षक दोनों ही अधिक क्रियाशील हो जाते है।
मूल्यांकन प्रणाली
मूलयांकन प्रणाली में आवश्यकतानुसार लिखित, मौखिक, निबंधात्मक तथा वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन विधियों का प्रयोग किया जाता है। इस स्तर पर प्रत्ययों के स्पष्टीकरण पर अधिक बल दिया जाता है।बोध-स्तर के शिक्षण के लिए सुझाव
- स्मृति-स्तर शिक्षण की परीक्षा में सफल होने पर ही छात्र को बोध-स्तर के शिक्षण में प्रवेश दिया जाना चाहिए
- बोध-स्तर के सोपानों का अनुसरण समुचित ढंग से किया जाना चाहिए।
- बोध-स्तर के विभिन्न सोपनों की परीक्षाओं में सफल होने पर ही अगले सोपान में प्रविष्ट किया जाना चाहिए।
- शिक्षक को पाठ्य-वस्तु में तल्लीन होने के साथ-साथ छात्रों को मनोवैज्ञानिक ढंग से अभिप्रेरणा भी देनी चाहिए।
- शिक्षक को कक्षा के आकांक्षा स्तर को भी उठाने का प्रयास करना चाहिए, जिससे छात्रों में अध्ययन के प्रति लगन हो सके।
- इस स्तर की शिक्षण व्यवस्था की समस्याओं को ध्यान में रखकर उनके लिए समाधान भी ज्ञात करना चाहिए।
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