वैदिक साहित्य का परिचय
वेदों का उद्गम और द्रष्टा ऋषि
वैदिक ज्ञान के प्रसार का माध्यम वैदिक संस्कृत रही है, जिसे देववाणी भी कहा जाता है। वैदिक साहित्य का उद्गम अत्यंत प्राचीन काल में हुआ, परंतु कुछ आधुनिक विद्वान 6000 ई.पू. से 800 ई.पू. के बीच मानते हैं। वैदिक धर्मशास्त्रों के अनुसार, वेद अपौरुषेय (मानव-रचित नहीं) और नित्य (सनातन) माने जाते हैं। चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा ने इन्हें अपने अंतःकरण में ऋषि-दृष्टि के माध्यम से अनुभव किया। यह अनुभूत ज्ञान ब्रह्म अर्थात् जगत् के उपादान कारण से उत्पन्न हुआ। इसी ज्ञान को आगे ऋषियों ने श्रुति परंपरा द्वारा संरक्षित रखा।
1.वेद संहिता
प्राचीन काल में वेद केवल श्रुति परंपरा द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी संकलित और संरक्षित किए जाते थे। लेकिन महाभारत के बाद जब कलियुग के प्रारंभ में स्मरण शक्ति कमजोर पड़ने लगी, तब महर्षि कृष्ण द्वैपायन व्यास ने चारों वेदों का संकलन किया और उन्हें चार भागों में विभाजित किया—
- ऋग्वेद – पारलौकिक और लौकिक ज्ञान।
- यजुर्वेद – यज्ञीय कर्मकांड।
- सामवेद – संगीत और स्तुति।
- अथर्ववेद – तंत्र, चिकित्सा, रहस्यमय विज्ञान।
संहिताओं को संरक्षित रखने और उनमें शुचिता रखने के लिए चार प्रमुख वैदिक ऋत्विजों का यज्ञीय विधान किया गया —
- होता – ऋग्वेद संहिता से मंत्रों का उच्चारण करता है।
- अध्वर्यु – यजुर्वेद संहिता के अनुसार यज्ञ का संपादन करता है।
- उद्गाता – सामवेद संहिता के मंत्रों को मधुर स्वर में गाता है।
- ब्रह्मा – संपूर्ण यज्ञ की देखरेख करता है, जिसका प्रमुख ग्रंथ अथर्ववेद संहिता है।
2. ब्राह्मण ग्रन्थ
ब्राह्मण ग्रंथ संहिताओं में उल्लिखित मंत्रों की व्याख्या करते हैं और यज्ञों की प्रक्रियाओं को स्पष्ट करते हैं। इन ग्रंथों में नैतिकता, सामाजिक व्यवस्था और राजनीतिक विषयों पर भी विचार किया गया है। प्रत्येक संहिता की अपनी विशिष्ट ब्राह्मण संहिता होती है, जो उसके याज्ञिक कर्मों की विस्तृत जानकारी प्रदान करती है।
3. आरण्यक
आरण्यक ग्रंथ मुख्य रूप से उन व्यक्तियों के लिए थे, जो सांसारिक जीवन छोड़कर वनों में रहकर साधना करना चाहते थे। ये ग्रंथ ब्राह्मण ग्रंथों से जुड़े हुए हैं, लेकिन इनमें कर्मकांड से आगे बढ़कर आध्यात्मिक चिंतन और ध्यान का महत्व बताया गया है। इनका संबंध विशेष रूप से वानप्रस्थ आश्रम से है।
4. उपनिषद्
उपनिषद् वैदिक साहित्य का अंतिम और सबसे गूढ़ भाग हैं। इनमें आत्मा, ब्रह्म और सृष्टि के रहस्यों की गहन व्याख्या की गई है। इन ग्रंथों में गुरु-शिष्य संवाद के माध्यम से गूढ़ आध्यात्मिक एवं दार्शनिक विषयों पर प्रकाश डाला गया है। उपनिषदों को ‘वेदांत’ भी कहा जाता है क्योंकि वे वैदिक विचारधारा के सर्वोच्च निष्कर्ष प्रस्तुत करते हैं।
वेदांग
वैदिक साहित्य को सुगमता से समझने और व्यवस्थित करने के लिए वेदांगों की रचना की गई। ये छह हैं—
- शिक्षा – उच्चारण एवं स्वरों की विधियाँ।
- कल्प – याज्ञिक कर्मकांड और आचार संबंधी नियम।
- छन्द – वैदिक छंदों की गणना एवं स्वरूप।
- निरुक्त – वैदिक शब्दों का अर्थ और व्याख्या।
- व्याकरण – शब्दों की व्युत्पत्ति और व्याकरणिक नियम।
- ज्योतिष – यज्ञों के अनुष्ठान हेतु शुभ मुहूर्त निर्धारण।
सूत्र साहित्य
वेदांगों के अंतर्गत विभिन्न कर्मकांडों और सामाजिक नियमों को सूत्र रूप में व्यवस्थित किया गया। इनके चार प्रमुख भेद हैं—
- श्रौतसूत्र – यज्ञ-विधियों का वर्णन।
- गृह्यसूत्र – पारिवारिक एवं व्यक्तिगत जीवन से जुड़े अनुष्ठानों का विवरण।
- धर्मसूत्र – सामाजिक नियम, कर्तव्य और नैतिक आदर्श।
- शुल्वसूत्र – यज्ञवेदिका के निर्माण की विधि।
निष्कर्ष
वैदिक साहित्य केवल धार्मिक ग्रंथों का संग्रह मात्र नहीं है, बल्कि यह प्राचीन भारतीय समाज, जीवन-दर्शन और आध्यात्मिकता का दर्पण भी है। इसकी विभिन्न शाखाएँ न केवल यज्ञीय परंपराओं को स्पष्ट करती हैं, बल्कि समाज की रीति-नीति, आचार-व्यवहार, शिक्षा, चिकित्सा, राजनीति और दर्शनशास्त्र को भी व्यापक रूप से परिभाषित करती हैं। यही कारण है कि वैदिक साहित्य भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर के रूप में आज भी प्रासंगिक बना हुआ है।
It was helpful 🙂
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