प्राचीन वैदिक शिक्षा व्यवस्था का सामान्य परिचय

प्राचीन वैदिक शिक्षा व्यवस्था का सामान्य परिचय:

प्राचीन भारत की वैदिक शिक्षा व्यवस्था एक उत्कृष्ट, नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों पर आधारित प्रणाली थी, जिसका उद्देश्य केवल ज्ञान प्राप्ति नहीं, बल्कि व्यक्ति के समग्र विकास — शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक — को सुनिश्चित करना था।

1. शिक्षा का उद्देश्य:

  • आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति।
  • सत्य, धर्म, ब्रह्मचर्य, अनुशासन और सेवा जैसे मूल्यों का विकास।
  • जीवन की चार पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) की सिद्धि के लिए तैयारी।

2. मुख्य शिक्षण संस्थान:

  • गुरुकुल प्रणाली: विद्यार्थी गुरु के आश्रम में रहकर शिक्षा प्राप्त करते थे। शिक्षा पूर्णतः नि:शुल्क होती थी और विद्यार्थी गुरु की सेवा करते हुए ज्ञान अर्जित करते थे।
  • प्रमुख गुरुकुल – तक्षशिला, नालंदा, वल्लभी, विद्यापीठ, उज्जयिनी आदि।

3. शिक्षा का माध्यम और विषय:

  • भाषा: संस्कृत
  • विषय: वेद, उपनिषद, व्याकरण, गणित, खगोलशास्त्र, आयुर्वेद, संगीत, राजनीति, युद्ध-कला, धर्मशास्त्र आदि।

4. शिक्षण विधि:

  • मौखिक परंपरा (श्रुति और स्मृति आधारित ज्ञान)
  • गुरु-शिष्य संवाद और श्रवण, मनन, निदिध्यासन की त्रि-स्तरीय प्रक्रिया।

5. विद्यार्थी जीवन:

  • ब्रह्मचर्य आश्रम में प्रवेश कर विद्यार्थी कठोर अनुशासन, संयम, शुद्ध आचरण और गुरुसेवा का पालन करते थे।

6. नारी शिक्षा:

  • आरंभिक वैदिक काल में नारी शिक्षा को भी महत्त्व प्राप्त था। घोषा, अपाला, लोपामुद्रा जैसी ऋषिकाओं ने वेदों की रचना में योगदान दिया।

7. शिक्षा का मूल्यांकन:

  • परीक्षा का कोई औपचारिक स्वरूप नहीं था; विद्यार्थी की योग्यता का आकलन गुरु द्वारा आचरण, ज्ञान और व्यवहार के आधार पर होता था।

नालंदा विश्वविद्यालय: इतिहास एवं शिक्षा व्यवस्था

1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

  • स्थापना: नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी ईस्वी में गुप्त सम्राट कुमारगुप्त प्रथम के शासनकाल में मानी जाती है।
  • यह विश्वविद्यालय वर्तमान बिहार राज्य के नालंदा ज़िले में स्थित था।
  • यह बौद्ध धर्म का प्रमुख शिक्षण केंद्र था, लेकिन यहाँ विभिन्न विषयों की पढ़ाई होती थी और सभी धर्मों के छात्र अध्ययन करते थे।

2. प्रमुख विशेषताएँ:

  • नालंदा विश्व का प्रथम आवासीय विश्वविद्यालय था, जहाँ विद्यार्थी और शिक्षक साथ रहते थे।
  • एक समय में यहाँ लगभग 10,000 विद्यार्थी और 2,000 शिक्षक मौजूद रहते थे।
  • विश्वविद्यालय में देश-विदेश से छात्र आते थे, विशेषकर चीन, तिब्बत, कोरिया, जापान, श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व एशिया से।

3. शिक्षा व्यवस्था:

(क) प्रवेश प्रक्रिया:

  • प्रवेश के लिए कठिन मौखिक परीक्षा होती थी।
  • योग्य छात्र ही प्रवेश पा सकते थे।

(ख) पाठ्यक्रम (Subjects):

  • बौद्ध दर्शन (हीनयान, महायान, वज्रयान)
  • वेद, व्याकरण, तर्कशास्त्र (न्याय), खगोलशास्त्र, गणित, आयुर्वेद, वास्तुशास्त्र, संगीत आदि।

(ग) शिक्षण विधियाँ:

  • विवाद (Debate), संवाद, श्रवण, मनन और निदिध्यासन जैसी परंपरागत विधियाँ अपनाई जाती थीं।
  • ग्रंथों का अध्ययन, व्याख्या और आलोचनात्मक विश्लेषण होता था।

(घ) पुस्तकालय:

  • नालंदा का पुस्तकालय धर्मगंज’ नाम से प्रसिद्ध था, जिसमें लाखों पांडुलिपियाँ थीं।
  • इसके तीन मुख्य भवन थे – रत्नसागर, रत्नोदधि, और रत्नरंजक

4. प्रमुख आचार्य और आगंतुक:

  • नागार्जुन, आर्यदेव, धर्मपाल, शीलभद्र जैसे विद्वान शिक्षक।
  • चीनी यात्री ह्वेनसांग (Xuanzang) और इत्सिंग (Yijing) ने यहाँ अध्ययन किया और इसकी महानता का उल्लेख किया।

5. विनाश:

  • 1193 ई. में मुस्लिम आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने नालंदा पर आक्रमण किया और विश्वविद्यालय तथा पुस्तकालय को नष्ट कर दिया।
  • हजारों विद्वानों की हत्या की गई और ग्रंथों को जलाया गया।

6. आधुनिक पुनरुद्धार:

  • नालंदा विश्वविद्यालय का पुनः स्थापना 2010 में भारत सरकार द्वारा की गई, जो आधुनिक ढंग से उच्च शिक्षा और शोध का केंद्र है।

तक्षशिला विश्वविद्यालय: एक परिचय

1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

  • तक्षशिला (Taxila) विश्व का एक प्राचीनतम विश्वविद्यालय था।
  • इसका उल्लेख रामायण और महाभारत में भी मिलता है।
  • यह वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित था।
  • इसकी स्थापना लगभग 600 ईसा पूर्व मानी जाती है।

2. संस्थापक और विकास:

  • माना जाता है कि इसकी स्थापना भरत के पुत्र तक्षक ने की थी।
  • मौर्य, गांधार और कुषाण काल में यह शिक्षा का प्रमुख केंद्र रहा।

3. शिक्षा व्यवस्था:

(क) प्रवेश और व्यवस्था:

  • यह एक खुला विश्वविद्यालय था, जिसमें छात्र अपने पसंदीदा शिक्षक के पास जाकर पढ़ सकते थे।
  • कोई औपचारिक प्रवेश प्रक्रिया नहीं थी, लेकिन विद्यार्थी की योग्यता देखी जाती थी।

(ख) पाठ्यक्रम (Subjects):

  • वेद, वेदांग, आयुर्वेद, धनुर्वेद, शल्य चिकित्सा
  • गणित, खगोलशास्त्र, भाषा, राजनीति, प्रशासन
  • तर्कशास्त्र, दर्शन, संगीत, चित्रकला आदि

(ग) प्रसिद्ध शिक्षक:

  • आचार्य चाणक्य (कौटिल्य)अर्थशास्त्र और राजनीति के विद्वान
  • आचार्य जीवकआयुर्वेदाचार्य और बौद्ध ग्रंथों में विख्यात
  • पाणिनि महान व्याकरणाचार्य, जिन्होंने संस्कृत व्याकरण की रचना की

(घ) विद्यार्थी:

  • भारत सहित मध्य एशिया, चीन आदि से छात्र यहाँ अध्ययन करने आते थे।
  • चंद्रगुप्त मौर्य भी यहीं से शिक्षा प्राप्त कर चाणक्य के मार्गदर्शन में मौर्य सम्राट बने।

4. शिक्षण विधियाँ:

  • गुरु-शिष्य परंपरा के अनुसार शिक्षा दी जाती थी।
  • शास्त्रों की मौखिक परंपरा के साथ-साथ व्यावहारिक ज्ञान पर भी बल दिया जाता था।

5. महत्व:

  • यह विश्वविद्यालय व्यापक विषयों का अध्ययन केंद्र था।
  • तक्षशिला केवल धार्मिक शिक्षा तक सीमित न होकर धर्मनिरपेक्ष और व्यावसायिक ज्ञान का भी प्रमुख स्रोत था।

6. पतन:

  • तक्षशिला विश्वविद्यालय का पतन 5वीं-6वीं शताब्दी ई. में हूणों के आक्रमण और राजनीतिक अस्थिरता के कारण हुआ।

 

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