स्वामी दयानन्द सरस्वती एवं स्वामी श्रद्धानंद जी का शिक्षा दर्शन
स्वामी
दयानन्द सरस्वती का शिक्षा दर्शन
स्वामी दयानन्द सरस्वती (1824–1883)
एक महान समाज-सुधारक, चिंतक और आर्य समाज के संस्थापक थे। उनका शिक्षा दर्शन वैदिक सिद्धांतों पर
आधारित था, जिसमें नैतिकता, राष्ट्रप्रेम, सत्य, धर्म और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का
समन्वय पाया जाता है। उनके शिक्षा-दर्शन का उद्देश्य एक ऐसा समाज निर्माण करना था
जो ज्ञान, विवेक और नैतिकता से परिपूर्ण हो।
मुख्य विशेषताएँ:
1. वैदिक
शिक्षा पर बल:
- स्वामीजी शिक्षा के लिए वेदों को
परम स्रोत मानते
थे।
- वे चाहते थे कि शिक्षा का आधार वेदों का
ज्ञान, यज्ञ,
तप और ब्रह्मचर्य हो।
2. चरित्र
निर्माण:
- शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य चरित्र
निर्माण था।
- उन्होंने कहा – “चरित्रहीन व्यक्ति शिक्षित नहीं, अशिक्षित है।”
3. स्त्री
शिक्षा का समर्थन:
- स्वामी दयानन्द नारी शिक्षा के प्रबल समर्थक थे।
- उन्होंने कहा कि स्त्रियाँ भी वेदाध्ययन की समान अधिकारी हैं।
4. धार्मिक
सहिष्णुता व वैज्ञानिक दृष्टिकोण:
- शिक्षा में तर्क और अनुभव को महत्त्व देते थे।
- अंधविश्वास, रूढ़ियों और पाखंडों का विरोध करते हुए वैज्ञानिक
सोच को
प्रोत्साहित किया।
5. शिक्षा
में मातृभाषा का उपयोग:
- उन्होंने संस्कृत और हिंदी को शिक्षा का माध्यम बनाने की वकालत की।
- अंग्रेजी शिक्षा को उपयोगी माना लेकिन उसे
भारतीय संस्कृति पर थोपे जाने का विरोध किया।
6. राष्ट्रीय
चेतना का विकास:
- स्वामी दयानन्द की शिक्षा नीति का उद्देश्य राष्ट्रप्रेम और स्वराज्य
की भावना जगाना
था।
- उन्होंने “भारत भारतियों के लिए”
का उद्घोष किया।
प्रमुख शैक्षिक योगदान:
- आर्य समाज की स्थापना (1875) – इसके माध्यम से वैदिक शिक्षा और सामाजिक
सुधार का प्रचार।
- गुरुकुल प्रणाली का पुनरुद्धार – नैतिकता और अनुशासन पर
आधारित शिक्षा।
- दयानन्द एंग्लो वैदिक स्कूलों की
परिकल्पना – जो बाद में DAV संस्थाओं के रूप में स्थापित हुए।
निष्कर्ष रूप में स्वामी दयानन्द
सरस्वती का शिक्षा दर्शन भारतीय संस्कृति, धर्म
और नैतिकता से ओत-प्रोत था। वे एक ऐसे शिक्षित समाज की कल्पना करते थे जो
वैज्ञानिक सोच वाला, नैतिक, राष्ट्रभक्त और आत्मनिर्भर हो। उनका दर्शन आज भी भारतीय शिक्षा के लिए
प्रेरणास्रोत है।
स्वामी
श्रद्धानंद जी का शिक्षा दर्शन एवं योगदान
स्वामी श्रद्धानंद (जन्म: 1856
– निधन: 1926) एक महान शिक्षाशास्त्री, समाज
सुधारक, पत्रकार और आर्य समाज के प्रमुख नेता थे। उनका शिक्षा दर्शन स्वामी
दयानन्द सरस्वती के वैदिक सिद्धांतों पर आधारित था। उन्होंने शिक्षा को भारतीय
संस्कृति, राष्ट्रनिर्माण और सामाजिक उत्थान का
माध्यम माना।
स्वामी
श्रद्धानंद जी का शिक्षा दर्शन:
1. वैदिक
आदर्शों पर आधारित शिक्षा:
- शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य को धर्म, नीति, आत्म-ज्ञान और कर्मयोग की ओर ले
जाना था।
- उन्होंने वैदिक धर्म के प्रचार और
पुनरुत्थान को शिक्षा का मूल उद्देश्य माना।
2. गुरुकुल
प्रणाली का समर्थन:
- उन्होंने प्राचीन भारतीय गुरुकुल परंपरा को
पुनर्जीवित किया।
- शारीरिक, मानसिक, नैतिक, और आत्मिक विकास पर बल दिया।
3. राष्ट्रवाद
और आत्मनिर्भरता:
- शिक्षा को राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ा।
- अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली का विरोध करते हुए स्वदेशी
शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा दिया।
4. समानता
और सामाजिक न्याय:
- उन्होंने शिक्षा को जाति, वर्ग, लिंग आदि के भेदभाव से मुक्त करने की बात कही।
- अछूतोद्धार और स्त्री-शिक्षा को बढ़ावा
दिया।
5. चरित्र
निर्माण और सेवा भावना:
- शिक्षा को केवल ज्ञान का साधन नहीं, चरित्र निर्माण और समाज सेवा का माध्यम
माना।
- उन्होंने छात्रों में कर्तव्य, अनुशासन और सेवा-भावना विकसित
करने पर बल दिया।
स्वामी श्रद्धानंद जी का योगदान:
1. गुरुकुल
कांगड़ी विश्वविद्यालय की स्थापना (1902):
- हरिद्वार (उत्तराखंड) में स्थापित यह
संस्थान उनका सबसे बड़ा शैक्षिक योगदान है।
- यहाँ वैदिक शिक्षा, राष्ट्रभक्ति और शुद्ध जीवन को केंद्र
में रखकर शिक्षा दी जाती थी।
2. शुद्धि
आंदोलन:
- धर्मांतरण से वापस हिंदू धर्म में लाने हेतु
चलाया गया ‘शुद्धि आंदोलन’ समाज सुधार की दिशा में ऐतिहासिक कदम था।
3. नारी
शिक्षा का समर्थन:
- उन्होंने स्त्रियों के लिए भी समान
शिक्षा के अधिकार की पैरवी की।
4. संपादन
कार्य और लेखनी:
- 'सुधारक', 'अर्जुन' आदि पत्रों के माध्यम से शिक्षा,
समाज सुधार और राष्ट्रहित के
विचार फैलाए।
5. स्वतंत्रता
संग्राम में भागीदारी:
- असहयोग आंदोलन में भाग लिया।
- महात्मा गांधी ने उन्हें
"हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक" कहा।
निष्कर्ष रूप में स्वामी श्रद्धानंद का शिक्षा दर्शन भारतीयता, वैदिक संस्कृति, राष्ट्रप्रेम और सामाजिक समानता से ओतप्रोत था। उन्होंने न केवल शिक्षा का
आध्यात्मिक उद्देश्य बताया, बल्कि
उसे सामाजिक क्रांति और राष्ट्रीय पुनरुत्थान का उपकरण भी बनाया।
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