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वैयक्तिक भिन्नता / Individual Variation

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Home वैयक्तिक भिन्नता / Individual Variation वैयक्तिक भिन्नता / Individual Variation     "भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में उनके स्वभाव, बुद्धि, शरीरिक-मानसिक क्षमता के अन्तर को वैयक्तिक भिन्नता कहते है"। शिक्षण के क्षेत्र में वैयक्तिक भिन्नता का अध्ययन बहुत महत्वपूर्ण होता है। वैयक्तिक भिन्नता के विचार का शिक्षण में प्रयोग सर्वप्रथम फ्रांसीसी मनोवैज्ञानिक गाल्टन ने किया था। वैयक्तिक भिन्नता के सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिकों ने कुछ परिभाषाएं दी है जो इस प्रकार है- स्किनर के अनुसार, “वैयक्तिक भिन्नता से हमारा तात्पर्य व्यक्तित्व के उन सभी पहलुओं से है, जिनका मापन व मूल्यांकन किया जा सकता है।” जेम्स ड्रेवर के अनुसार, “कोई व्यक्ति अपने समूह के शारीरिक तथा मानसिक गुणों के औसत से जितनी भिन्नता रखता है, उसे वैयक्तिक भिन्नता कहते है।” टॉयलर के अनुसार , “शरीर के रूप-रंग, आकार, कार्य, गति, बुद्धि, ज्ञान, उपलब्धि, रुचि, अभिरुचि आदि लक्षणों में पाई जाने वाली भिन्नता को वैयक्तिक भिन्नता कहते है।” वैयक्तिक भिन्नता के प्रकार   वैयक्तिक भिन्नता के प्रकार निम्नलिखित है- भाषायी भिन्नता...

वयस्क अध्येता Adult Leaner

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Home वयस्क अध्येता Adult Leaner वयस्क अध्येता Adult Leaner      18 वर्ष से ऊपर के व्यक्ति को वयस्क अवस्था में रखा जाता है। वयस्क अध्येता की प्रमुख विशेषताओं को हम निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर समझ सकते है- शैक्षिक  सामाजिक  भावनात्मक  संज्ञानात्मक  शैक्षिक     वयस्क अध्येता में स्वयं ही परीक्षण, निरीक्षण, विचार और तर्क करने की प्रवृत्ति का उचित विकास होता है। इस अवस्था में वयस्क अध्येता को जिम्मेदारी का एहसास होता है। अतः वयस्क अध्येता शिक्षण कार्य को अपनी कर्मनिष्ठा तथा उत्तरदायित्व की भावना से करने के प्रति समर्पित होता है। सामाजिक       वयस्क अध्येता सामाजिक परिवेश में अच्छी तरह से समन्वित रहता है। वह सामाजिक रीति-रिवाजों, परम्पराओं आदि को जनता है। वयस्क अध्येता सामाजिक जिम्मेदारी को निभाते हुए शिक्षण कार्य को निष्ठापूर्वक करने में सक्षम होता है। भावनात्मक       वयस्क अध्येता भावनात्मक रूप से सही निर्णय लेने तथा किसी भी कार्य को करने में सक्षम होता है। वह तर्क के माध्यम से सभी निष्कर्ष प्राप्त करता ...

किशोर अध्येता Teenager Learner

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Home किशोर अध्येता Teenager Learner किशोर अध्येता Teenager Learner     12 वर्ष से 18 वर्ष तक के आयु के बालक को किशोर अवस्था में रखा जाता है। किशोर अध्येता की प्रमुख विशेषताओं को हम निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर समझ सकते है- शैक्षिक  सामाजिक  भावनात्मक  संज्ञानात्मक  शैक्षिक      किशोर अवस्था अध्येता में स्वयं परीक्षण, निरीक्षण, विचार और तर्क करने की प्रवृत्ति होती है। इसी लिए इस स्तर पर शिक्षण का स्वरूप भी मानसिक विकास, शारीरिक विकास एवं व्यक्तिगत भिन्नता के अनुरूप होना चाहिए। सामाजिक       किशोर अवस्था में अध्येता को जीवन में नए-नए अनुभव का ज्ञान होता है जिससे उसमें इच्छा, निराशा, असफलता आदि का संचार होता है। निराशा और असफलता आदि के कारण ही उसमें आपराधिक प्रवृत्ति का जन्म होता है। इसी अवस्था में ही उसमें समाजसेवा का भाव भी उत्पन्न होता है। अतः शिक्षण की इस अवस्था में उसे सही मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। भावनात्मक        किशोर अवस्था में अध्येता भावनात्मक रूप से किसी भी तथ्य को समझने में जल्दी ...

अध्येता या अधिगमकर्ता Learner

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Home अध्येता या अधिगमकर्ता Learner अध्येता या अधिगमकर्ता Learner       अध्येता का शाब्दिक अर्थ होता है- “अध्ययन करने वाला”। इसके अलावा अध्येता को शिक्षार्थी, विद्यार्थी या अधिगमकर्ता भी कहते है, जो कि शिक्षण का केन्द्रबिन्दु होता है। प्रारम्भ में अध्येता अपरिपक्व अवस्था में होता है, किन्तु बाद में धीरे-धीरे वह सामाजिक एवं सांस्कृतिक गुणों के माध्यम से परिपक्व अवस्था में आ जाता है। अध्येता में अनुशासन की प्रवृत्ति शिक्षण के माध्यम से ही विकसित होती है और वह धीरे-धीरे एक आदर्श नागरिक बन कर राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अध्येता की मुख्य विशेषताएं   अध्येता ज्ञान की प्राप्ति करता है। अध्येता स्मरण एवं अनुभव को संगठित व परिष्कृत करता है।    अध्येता के अधिगम की प्रेरणा, स्वाभाविक रूचियाँ, अभिरुचियाँ, एवं अभिवृत्तियों को निर्धारित करता है।   अध्येता अधिगम प्रक्रिया को सफल अथवा असफल करता है।  अध्येता अधिगम प्रक्रिया में व्यक्तिगत एवं सामाजिक आवश्यकताओं को जागृत करता है।  अध्येता राष्ट्र के निर्माण एवं समाज के चारित्रिक सद्...

शिक्षण की विशेषताएं एवं आधारभूत अवश्यकताएं Features and Basic Requirements of Teaching

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Home शिक्षण की विशेषताएं एवं आधारभूत अवश्यकताएं Features and Basic Requirements of Teaching शिक्षण की विशेषताएं एवं आधारभूत अवश्यकताएं Features and Basic Requirements of Teaching      शिक्षण वह प्रक्रिया है जिसमें शिक्षक शिक्षार्थी का ज्ञान, कौशल तथा अभिरुचियों आदि को सीखने में सहायता करता है। इस आधार पर शिक्षण की निम्नलिखित विशेषताएं है- शिक्षण एक व्यवसायिक प्रक्रिया है।  शिक्षण एक पारस्परिक अन्तःक्रिया है जिसमें अध्यापक विद्यार्थी का मार्गदर्शन और विकास करता है।  शिक्षण विविध में रूपों सम्पन्न होती है, जैसे- औपचारिक, अनौपचारिक, निदेशात्मक एवं अनुदेशात्मक प्रशिक्षण आदि।  शिक्षण का अवलोकन एवं विश्लेषण वैज्ञानिक ढंग से होता है।  शिक्षण में सम्प्रेषण कौशल का आधिपत्य होता है।  शिक्षण, शिक्षक के परिश्रम का परिणाम होता है।  शिक्षण में अपेक्षित सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है।  शिक्षण के द्वारा छात्र बौद्धिक विकास होता है।  शिक्षण के द्वारा छात्र के चरित्र का विकास होता है। शिक्षण की आधारभूत अवश्यकताएं शिक्षण की मूलभूत अवश्यकता...

हण्ट शिक्षण मॉडल Hunt Teaching Model

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Home हण्ट शिक्षण मॉडल Hunt Teaching Model हण्ट शिक्षण मॉडल Hunt Teaching Model       हण्ट शिक्षण मॉडल को चिन्तन  स्तर की शिक्षण व्यवस्था भी कहते है। चिन्तन के स्तर पर शिक्षक अपने छात्रों में चिन्तन, तर्क तथा कल्पना शक्ति को बढ़ता है , जिससे छात्र इन उपगमों के माध्यम से अपनी समस्या का समाधान कर सके। इस स्तर पर शिक्षण में स्मृति तथा बोध दोनों स्तरों का शिक्षण निहित होता है। इसके बिना चिन्तन-स्तर का शिक्षण सफल नहीं हो सकता।      चिन्तन स्तर का शिक्षण समस्या केन्द्रित होता है, इसमें छात्र को मौलिक चिन्तन करना होता है। इस स्तर पर छात्र विषय-वस्तु के सम्बन्ध में आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाते है। इस स्तर पर छात्र सीखे हुये तथ्यों तथा सामान्यीकरण की जाँच करता है और नवीन तथ्यों की खोज करता है।      इस शिक्षण के सम्बन्ध में विग्गी का कथन है कि " चिन्तन स्तर के शिक्षण में कक्षा में एक ऐसा वातावरण विकसित किया जाता है, जो अधिक सजीव, प्रेरणादायक, सक्रिय, आलोचनात्मक, संवेदनशील हो और नवीन एवं मौलिक चिन्तन को खुला अवसर प्रदान करे। इस प्रकार का शिक्षण बोध स...

मॉरिसन शिक्षण मॉडल Morrison Teaching Model

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Home मॉरिसन शिक्षण मॉडल Morrison Teaching Model मॉरिसन शिक्षण मॉडल Morrison Teaching Model      मॉरिसन शिक्षण मॉडल को बोध स्तर या समझ स्तर की शिक्षण व्यवस्था भी कहते है। शिक्षण के क्षेत्र में बोध एक बहुत व्यापक शब्द है। बोध शब्द को मनोवैज्ञानिको तथा शिक्षाशास्त्रीयों ने कई अर्थों में प्रयुक्त किया है, इसलिए शिक्षक भी इस शब्द को अनिश्चित ढंग से प्रस्तुत करता है। शब्दकोश में भी इसके कई अर्थ दिये गए है, जैसे- अर्थ का प्रत्यक्षीकरण करना, विचारों का बोध होना, गहनता से परिचित होना  प्रकृति एवं स्वभाव को समझना  भाषा में प्रयुक्त होने वाले अर्थ को समझना तथा तथ्य के रूप में स्पष्ट हो जाना।         मौरिस एल विग्गी ने बोध का प्रयोग निम्नलिखित तीन पक्षों को स्पष्ट करने के लिए किया है- विभिन्न तथ्यों में सम्बन्ध देखना तथ्यों को संचालन के रूप में देखना तथ्यों के सम्बन्ध तथा संचालन दोनों को समन्वित करना      बोध स्तर के शिक्षण के लिए यह आवश्यक है कि इससे पूर्व स्मृति स्तर पर शिक्षण हो चुका हो। इसके बिना बोध स्तर शिक्षण सफल नहीं हो...