UGC NET General Paper |
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43.एक रद्द परिकल्पना है-
- जब चलों के बीच कोई भिन्नता न हो
- शोध - परिकल्पना के समान
- प्रकृति में व्यक्ति निष्ठ
- जब चलों के बीच भिन्नता हो
उत्तर- (1) शून्य परिकल्पना (Null hypothesis)- वह परिकल्पना है जो यह बताती है कि दो समूहों अथवा दो चरों का आपसी अन्तर शून्य है या दो चरों या दो समूहों में कोई सार्थक अन्तर नही है, शून्य परिकल्पना या रद्द परिकल्पना कहलाती है। इस प्रकार शून्य परिकल्पना की परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती “शून्य परिकल्पना की मान्यता यह है कि दो चरो में कोई अन्तर नहीं है इसका निर्माण अस्वीकृत होने के उद्देश्य से किया जाता है।" गैरेट (H.E. Garrett) के अनुसार, “शून्य उपकल्पना की यह मान्यता है कि समष्टि के दो प्रतिदर्श मध्यमानों में सत्य अन्तर नहीं है और यदि प्रतिदर्श मध्यमानों में कोई अन्तर है तो यह संयोगजन्य (Accidental) है और यह अन्तर महत्वपूर्ण नहीं है।" शून्य उपकल्पना की सहायता से दो प्रतिदर्श के मध्यमानों के अन्तर की सार्थकता (Significant Difference) का अध्ययन किया जाता है । इस परिकल्पना का संकेत चिन्ह Ho होता है। इस परिकल्पना के कुछ उदाहरण निम्न प्रकार से है –
- समूह-अ और समूह-ब की बुद्धि में कोई अन्तर नही है।
- एक समूह के पुरुषों की बुद्धि के मध्यमान और दूसरे समूह की स्त्रियों की बुद्धि के मध्यमान में सार्थक अन्तर नही है।
- शहरी और ग्रामीण क्षेत्र की छात्रों के संवेगात्मक समायोजन में अन्तर नही होता है।