Saturday, September 25, 2021

उपलब्धि परीक्षण प्रायः किसके लिए प्रयुक्त किए जाते हैं?


Q. उपलब्धि परीक्षण प्रायः निम्न में से किसके लिए प्रयुक्त किए जाते हैं?

  1. किसी पाठ्यक्रम हेतु प्रत्याशियों के चयन के लिए
  2. सीखने वालों के सबल व दुर्बल पक्षों की पहचान के लिए
  3. शिक्षण के पश्चात् सीखने की मात्रा के मूल्यांकन के लिए
  4. किसी विशिष्ट कार्य हेतु चयन करने के लिए


उत्तर- (3) उपलब्धि परीक्षण का उपयोग मुख्य रूप से निम्न उद्देश्यों की दृष्टि से किया जाता है -

  1. यह आकलन करना कि विद्यार्थियों में सफलता प्राप्त करने सम्बन्धी जरूरी पूर्वा पेक्षी कौशल मौजूद है या नही, या फिर यह जानना कि क्या योजनाबद्ध शिक्षण के उद्देश्य प्राप्त कर लिए गए है या नहीं। 
  2. विद्यार्थियों के अधिगम को मॉनीटर करना और अध्यापन-अधिगम प्रक्रिया के दूर विद्यार्थियों और शिक्षको दोनों के लिए निरन्तर प्रतिपुष्टि उपलब्ध कराना।
  3. विद्यार्थियों की अधिगम संबंधी कठिनाइयों का पता लगाना, चाहे वे स्थाई हो अथवा आवर्ती।
  4. विद्यार्थियों को ग्रेड देना। 

शिक्षण के दौरान विद्यार्थियों की अधिकतम सहभागिता किसके द्वारा संभव है?


Q. शिक्षण के दौरान विद्यार्थियों की अधिकतम सहभागिता किसके द्वारा संभव है?

  1. व्याख्यान पद्धति
  2. निदर्शन पद्धति
  3. आगमनात्मक पद्धति
  4. पाठ्यपुस्तक पद्धति


उत्तर- (2) शिक्षण के दौरान विधयार्थियों की अधिकतम सहभागिता निदर्शन पद्धति के द्वारा संभव होता है। निदर्शन पद्धति या प्रदर्शन विधि की व्याख्यान विधि या एक पक्षीय प्रक्रिया (Unidimensional Process) माना जाता है जिसमें शिक्षक के अत्यधिक प्रभुत्व के लिए छात्र हितों का बलिदान दिया जाता है। प्रदर्शन विधि ऐसे कक्षा वातावरण का निर्माण करती है जहाँ शिक्षक-छात्र दोनों ही रुचिकर परिवेश में मिलजुलकर कार्य करते है। इसप्रकार इस विधि में शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावी बनाकर छात्रों का सर्वोत्तम ढंग से विकास किया जाता है। इस विधि में एक शिक्षक प्रयोग एवं प्रदर्शन दोनों ही का संयुक्त एवं प्रभावी ढंग से प्रयोग करता है अर्थात शिक्षक व्याख्यान भी प्रस्तुत करता है, समझाता भी है, प्रश्न भी पूछता है और उत्तर प्रस्तुत करता है।  


शिक्षण का पूर्वनिर्धारित स्तर है?


Q. निम्नलिखित में से कौन-सा शिक्षण का पूर्वनिर्धारित स्तर नही है?

  1. स्मरण
  2. बोध
  3. परावर्तित
  4. विभेदीकरण


उत्तर- (4) शिक्षण का पूर्वनिर्धारित स्तर विभेदीकरण नहीं है।  



शिक्षक की अभिवृत्ति जिसका उसके शिक्षण पर प्रभाव पड़ता है, का संबंध किस क्षेत्र से है?


Q. शिक्षक की अभिवृत्ति जिसका उसके शिक्षण पर प्रभाव पड़ता है, का संबंध है -

  1. भावात्मक क्षेत्र से
  2. ज्ञानात्मक क्षेत्र से
  3. सहजातात्मक क्षेत्र से
  4. मनश्चालक क्षेत्र से


उत्तर- (1) शिक्षक की अभिवृत्ति जिसका उसके शिक्षण पर प्रभाव पड़ता है का संबंध भावात्मक क्षेत्र से होता है।


नैदानिक मूल्यांकन क्या अभिनिश्चित करता है?


Q. नैदानिक मूल्यांकन अभिनिश्चित करता है?

  1. अनुदेशों के प्रारंभ में विद्यार्थियों का कार्य-निष्पादन
  2. अनुदेशों के दौरान अधिगम की प्रगति और विफलता
  3. अनुदशों के अंत में उपलब्धि की स्थिति
  4. अनुदेशों के दौरान अधिगम की सतत समस्याओं के कारण और निदान


उत्तर- (4) नैदानिक मूल्यांकन, अनुदेशों के दौरान अधिगम की सतत समस्याओं के कारण और निदान को अभिनिश्चित करता है ताकि विद्यार्थी सही तरीके से अधिगम कर सके।


शिक्षा मनुष्य में पहले से विराजमान पूर्णता का आविर्भाव है। यह किसने कहा था?


Q. शिक्षा मनुष्य में पहले से विराजमान पूर्णता का आविर्भाव है" के द्वारा कहा गया है -

  1. महात्मा गाँधी
  2. रविन्द्रनाथ टैगोर
  3. स्वामी विवेकानन्द
  4. श्री अरबिंदो  


उत्तर- (3) शिक्षा मनुष्य में पहले से विराजमान पूर्णता का आविर्भाव है। ज्ञान मनुष्य में स्वभावसिद्ध है, कोई भी ज्ञान बाहर से नहीं आता, सब अन्दर ही है। हम जो कहते हैं कि मनुष्य 'जानता' है, यथार्थ में मानव शास्त्र संगत भाषा में, हमें कहना चाहिए कि वह 'अविष्कार करता है, 'अनावृत' या 'प्रकट' करता है। मनुष्य जो कुछ सीखता है, वह वास्तव में अविष्कार करना ही है। अविष्कार' का अर्थ है- मनुष्य का अपनी अनन्त ज्ञानस्वरूप आत्मा के ऊपर से आवरण को हटा लेना। हम कह सकते हैं कि 'न्यूटन' ने गुरुत्वाकर्षण का अविष्कार किया तो क्या वह अविष्कार कहीं एक कोने में न्यूटन की राह देखने बैठा था? नहीं, वरन् उसके मन में ही था। जब समय आया, तो उसने उसे जान लिया या ढूंढ़ निकाला। संसार को जो कुछ ज्ञान प्राप्त हुआ है, वह सब मन से ही निकला है। विश्व का असीम ज्ञान भंडार स्वयं तुम्हारे मन में है। बाहरी संसार तो एक सुझाव, एक प्रेरक मात्र है, जो तुम्हें अपने ही मन का अध्ययन करने के लिए प्रेरित करता है। सेब के गिरने से न्यूटन को कुछ सूझ पड़ा और उसने अपने मन का अध्ययन किया। उसने अपने मन में विचार की पुरानी कड़ियों को फिर से व्यवस्थित किया और उनमें एक नयी कड़ी को देख पाया, जिसे हम गुरुत्वाकर्षण का नियम कहते हैं। वह न तो सेब में था न पृथ्वी के केन्द्रस्थ किसी में ।

 - स्वामी विवेकानन्द

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