Saturday, October 23, 2021

गुणात्मक शोध Qualitative Research

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गुणात्मक शोध Qualitative Research

गुणात्मक शोध आगमन पद्धति पर आधारित अनुसंधान होता है। जिसमें शोध में प्रयुक्त चरों के गुणों का विश्लेषण किया जाता है। इस शोध का मुख्य उद्देश्य मानव व्यवहार और उसे नियंत्रित करने वाले कारक तत्वों को समझना है। गुणात्मक शोध का उपयोग नीति और कार्यक्रम मूल्यांकन अनुसंधान के लिए किया जाता है। विश्वसनीयता और वैधता इया शोध का मुख्य विषय है। गुणात्मक शोध में संकल्पना (Hypothesis) का प्रयोग नहीं किया जाता बल्कि इस विकल्प को खुला रखा जाता है। गुणात्मक अनुसंधान में कुछ विशिष्ट विधियों का प्रयोग किया जाता है जो निम्न प्रकार है-

  • समूह केन्द्रित अनुसंधान – यह कुछ व्यक्तियों का समूह होता है जिसमें शोध के विषय पर चर्चा की जाती है।
  • प्रत्यक्ष अवलोकन – इसके अन्तर्गत बाहरी पर्यवेक्षक के द्वारा समूह एकत्र किया जाता है।
  • गहन साक्षात्कार – यह तथ्यों को गहराई से जानने का प्रयास होता है।
  • कथात्मक अनुसंधान – यह प्रयुक्त साहित्य का गहनता से अध्ययन से सम्बन्धित है।
  • घटना जन्य अनुसंधान – इसके अन्तर्गत व्यक्तियों से किसी घटना के बारे में अनुभव लिया जाता है।
  • जातिवृत्त अनुसंधान – इसके अन्तर्गत शोध उद्देश्य का भौतिक और सामाजिक पर्यावरण के अन्तर्गत निर्धारण किया जाता है।
  • व्यक्तिगत अध्ययन अनुसंधान – इसके अन्तर्गत मनोवैज्ञानिक विकार, सामाजिक शास्त्र, व्यापार क्षेत्र आदि प्रदत्तो का विश्लेषण किया जाता है।
  • प्रदत्त आधारित सिद्धान्त – इसके अन्तर्गत शोध प्रक्रिया में एकत्र प्रदत्तो का विश्लेषण कर उनसे सम्बन्धित सिद्धान्त विकसित किया जाता है।

उपरोक्त विधियों के अतिरिक्त पात्र अभिनय, सतत-अनुकरण और डायरी भी गुणात्मक शोध के अन्तर्गत ही आते है।

मात्रात्मक शोध Quantitative Research

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मात्रात्मक शोध Quantitative Research

मात्रात्मक शोध निगमनात्मक शोध का ही एक रूप है। मात्रात्मक शोध में पहले से ही शोध की उपकल्पना का निर्धारण कर लिया जाता है साथ ही सिद्धांत भी पहले से ही निर्धारित रहता है। मात्रात्मक शोध आंकड़ों पर आधारित शोध है और इसका निष्कर्ष भी आंकड़ों द्वारा ही निर्धारित होता है। मात्रात्मक शोध में किसी भी प्रकार के भाव का कोई स्थान नहीं होता बल्कि यह शोध संरक्षित साक्षात्कार, अवलोकन, अभिलेख तथा रिपोर्ट की समीक्षा आदि का डाटा संग्रहीत करता है।

Friday, October 22, 2021

निगमनात्मक शोध Deductive Research

निगमनात्मक शोध Deductive Research

पूर्व स्वीकृत सामान्य सत्य के आधार पर विशेष वस्तु की प्रकृति का अनुमान करने की प्रक्रिया निगमनात्मक शोध कहलाती है। यह प्रक्रिया समष्टि ज्ञान से व्यष्टि ज्ञान की और गमन है। निगमनात्मक शोध की प्रक्रिया भी तार्किक प्रक्रिया है। तार्किक निगमनात्मक विवेचना के स्तर पर शोध प्रसंग से संदर्भित ज्ञान का विश्लेषण प्रस्तुत किया जाता है। इस स्तर पर आगमनात्मक तरीके से प्राप्त सामान्यीकरण तथ्यों या व्यवस्थित परिकल्पनाओ व्याख्याओं की निगमनात्मक मीमांसा की जाती है और पूर्व स्वीकृत तथ्यों, तथ्य-सम्बन्धी सामान्यीकरणों एवं परिकल्पनात्मक व्याख्याओं का निहितार्थ स्पष्ट किया जाता है।

आगमनात्मक शोध Inductive Research

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आगमनात्मक शोध Inductive Research

किसी विशिष्ट मामले से सामान्य निष्कर्ष तक पहुँचने की प्रक्रिया को आगमनात्मक शोध कहते है। इस शोध पद्धति में एक समूह की वस्तुओं में से कुछ का निरीक्षण कर सम्पूर्ण समूह की प्रकृति का अनुमान किया जाता है। अनुमान की यह प्रक्रिया पूर्णतः तार्किक होती है। अतः आगमनात्मक शोध तर्क प्रणाली पर आधारित होता है। इस तार्किक प्रणाली में आधारवाक्य विशेष होते हैं जो कि अनुभव से प्राप्त होते हैं और निष्कर्ष सामान्य तर्कवाक्य होता हैजिसमें केवल आकारिक सत्यता ही नहीं वरन् वास्तविक सत्यता भी होती है। इस प्रकार आगमनात्मक शोध में विभिन्न उदाहरणों अथवा अनुभवों के सामान्यीकरण के द्वारा वांछित ज्ञान को प्राप्त करने का प्रयास करते है।

विकासात्मक शोध Development Research

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विकासात्मक शोध Development Research

वह अनुसंधान जिसमे एक नोर्मेटिव सर्वेक्षण किसी समष्टि विशेष के विकासात्मक स्वरूप का विभिन्न आयु वर्ग या जीवन कालों के सन्दर्भ में अध्ययन किया जाता है, विकासात्मक शोध कहलाता है। नेशनल साइंस फाउण्डेशन के अनुसार, “विकासात्मक शोध वह है जिसमें बालकों के विकास से सम्बन्धित शोध किया जाता है”। विकासात्मक अनुसंधान मनोविज्ञान के क्षेत्रों और व्यवहारिक विज्ञानों के मामलों के लिए उपयोगी होता है। विकासात्मक अनुसंधान के कुछ निश्चित सोपान है जो निम्न प्रकार हैं-

  1. उचित समस्या का चयन
  2. चयन की गई समस्या की पहचान
  3. सम्बन्धित साहित्य की खोज
  4. प्रतिदर्श का चयन
  5. उचित उपकरण या संसाधनों का चयन
  6. आवश्यक और उपयोगी प्रदत्तो का संकलन
  7. प्रदत्त प्रक्रियाकरण और विश्लेषण
  8. विश्लेषण के माध्यम से निष्कर्ष
  9. अनुसंधान प्रतिवेदन प्रस्तुत करना

Thursday, October 21, 2021

क्रियात्मक शोध Action Research

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क्रियात्मक शोध Action Research

क्रियात्मक शोध शब्द का प्रयोग प्रथम बार ‘कुर्त लेविन’ (Kurt Lewin) ने 1940 में किया था। जिसकी परिभाषा करते हुए हल्येस (Halsey) लिखते है कि “क्रियात्मक अनुसंधान वास्तविक संसार की कार्य पद्धति में हस्तक्षेप है और ऐसे हस्तक्षेप के क्या प्रभाव रहे, उनकी गहन समीक्षा है”। क्रियात्मक शोध सैद्धांतिक ज्ञान की खोज पर बल न देकर व्यवसायिक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है। इसी को परिभाषित करते हुए एस. एम. कोर कहते है- “क्रियात्मक अनुसंधान एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक व्यवसायी अपने निर्णय में निर्देशित होने के लिए, सुधार लाने एवं मूल्यांकन के लिए अपनी समस्याओं का वैज्ञानिक ढंग से अनुभव करता है”। इस प्रकार मुख्य रूप से क्रियात्मक शोध तीन प्रकार की समस्या के लिए उपयुक्त होता है-

  1. तत्काल समस्या के समाधान के लिए
  2. पहले से ही चल रहे किसी अनुसंधान की चिंत्तनशील समीक्षा के लिए
  3. समस्या का समाधान करने वाली प्रक्रियाओं में सुधार के लिए

क्रियात्मक शोध की प्रक्रिया

क्रियात्मक शोध एक चक्रीय प्रक्रिया है जिसे क्रिया चक्र या अन्वेषण चक्र भी कहते है। क्रियात्मक शोध का चक्रीय क्रम निम्नलिखित है-

क्रियात्मक शोध के चरण

क्रियात्मक शोध की प्रक्रिया 6 चरणों में पूर्ण होती है-

  1. समस्या का चयन
  2. समस्या का मूल्यांकन
  3. परिकल्पनाओं का निर्माण
  4. प्रदत्त संकलन
  5. परिकल्पनाओ का परीक्षण
  6. निष्कर्ष एवं सुझाव प्राप्ति

क्रियात्मक शोध की विशेषताएं

  • इस शोध के द्वारा शैक्षक समस्याओं का समाधान किया जाता है।
  • इस शोध के अन्तर्गत व्यवहारिक पक्षों पर अधिक बल दिया जाता है।
  • यह शोध किसी संस्था या समुदाय तक ही सीमित राहत है।
  • यह शोध तात्कालिक समस्याओं के समाधान के लिए उपयुक्त है।
  • यह शोध विकासात्मक अनुसंधान को बढ़ावा देता है।

क्रियात्मक शोध के उद्देश्य

  • शैक्षणिक संस्थानों में उत्पन्न समस्याओं का समाधान करना
  • छात्रों के निष्पादन स्तर में होने वाली समस्याओं का समाधान करना
  • विद्यालय की शिक्षण प्रणाली एवं वातावरण में सुधार करना
  • विद्यालयों में कार्यरत कर्मचारियों का निष्पादन स्तर उच्च करना  

व्यावहारिक शोध Applied Research

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व्यावहारिक शोध Applied Research

श्रीमती यंग (P.V Young) के अनुसार, “ज्ञान की खोज का एक निश्चित सम्बन्ध लोगों की प्राथमिक आवश्यकताओं तथा कल्याण से होता है। वैज्ञानिक की यह मान्यता यह है कि समस्त ज्ञान सारभूत रूप से उपयोगी इस अर्थ में है कि वह एक सिद्धान्त के निर्माण में या एक कला को व्यवहार में लाने में सहायक होता है। सिद्धान्त तथा व्यवहार आगे चलकर बहुधा एक-दूसरे में मिल जाते हैं”। इसी मान्यता के आधार पर सामाजिक अनुसंधान का जो दूसरा प्रकार प्रकट होता है उसे व्यवहारिक शोध कहते है। इस प्रकार यह शोध विशिष्ट एवं व्यवहारिक समस्याओं का समाधान करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। व्यावहारिक शोध नीति निर्धारण एवं प्रशानिक घटना को समझने के लिए बहुत उपयोगी होता है।

व्यवहारिक शोध की विशेषताएं

  • व्यवहारिक सोध का सम्बन्ध जीवन के व्यवहारिक पक्ष से होता है।
  • व्यवहारिक शोध सामाजिक समस्याओ के समाधान मे उपयोगी होता है।
  • व्यावहारिक शोध का सम्बन्ध विषय के गहन ज्ञान से होता है।   

प्राकृतिक आपदा से बचाव

Protection from natural disaster   Q. Which one of the following is appropriate for natural hazard mitigation? (A) International AI...