ब्राह्मण ग्रंथों का सामान्य परिचय

ब्राह्मण ग्रन्थ

    भारतीय परंपरा मन्त्र और ब्राह्मण दोनों को वेद कहती है (मन्त्रब्राह्मणयोर्वेदनामधेयम्), किन्तु, आधुनिक विचारक वेद से केवल संहिता-भाग का ही ग्रहण करते हैं। ब्राह्मण शब्द ब्रह्मन् से बना है, जिसका अर्थ है- वेद (ब्रह्म) से सम्बद्ध। अतः वेदों की शाखाओं की व्याख्या करने के लिए पृथक् पृथक् ब्राह्मण ग्रन्थ लिखे गए। यद्यपि इनका स्वरूप मूलतः धार्मिक है, पर राजनीतिक, सामाजिक तथा दार्शनिक विषयों का भी इनमें समावेश है। ये सभी विषय मन्त्रों की व्याख्या से ही जोड़े गए हैं। वैदिक कर्मकाण्ड का विकास इन्हीं ग्रन्थों से जाना जा सकता है। इनके अतिरिक्त सृष्टि से सम्बद्ध पौराणिक कथाएँ भी ब्राह्मणों में आई हैं। वस्तुतः वैदिक संहिताओं के प्रतीकात्मक अर्थों को ब्राह्मणों में विस्तार दिया गया है। इनमें मत्स्य द्वारा सृष्टि की रक्षा, शुनः शेप की बलि दिए जाने से रक्षा इत्यादि कथाएँ हैं। यहाँ प्रत्येक याज्ञिक विधान से कोई न कोई आख्यान जोड़ दिया गया है।

    ऋग्वेद-संहिता से सम्बद्ध दो ब्राह्मण-ग्रन्थ हैं - ऐतरेय और कौषीतकि। पहले में 40 और दूसरे में 30 अध्याय हैं। दोनों में विषयवस्तु की बहुत समानता है। इनमें सोमयाग, अग्निहोत्र, राजसूय, राज्याभिषेक इत्यादि का विवरण दिया गया है। ऐतरेय ब्राह्मण ऐतरेय महीदास की रचना है, जबकि कहोड़ कौषीतकि ने कौषीतकि ब्राह्मण की रचना की। इन दोनों में सरल गद्य का प्रयोग है।

    शुक्लयजुर्वेद की माध्यन्दिन और काण्व दोनों शाखाओं के ब्राह्मण ग्रन्थों का नाम शतपथ है, किन्तु दोनों शाखाओं के शतपथ ब्राह्मण पृथक् पृथक् हैं। इनमें अध्यायों की योजना में अन्तर है। माध्यन्दिन शतपथ में 14 काण्ड तथा 100 अध्याय हैं, जबकि काण्व शाखा के शतपथ में 104 अध्याय तथा 17 काण्ड हैं। शतपथ ब्राह्मण ऋग्वेद के बाद वैदिक साहित्य में सबसे बड़ा ग्रन्थ है। इसमें दर्शपूर्णमास, पितृयज्ञ (श्राद्ध), उपनयन, स्वाध्याय, अश्वमेध, सर्वमेध इत्यादि का वर्णन है। पूरे ब्राह्मण-ग्रन्थ में याज्ञवल्क्य को प्रामाणिक माना गया है, क्योंकि इसी ऋषि ने सूर्य की उपासना करके शुक्लयजुर्वेद की प्राप्ति की थी। अग्नि-चयन वाले अध्याय में शाण्डिल्य ऋषि को प्रामाणिक माना गया है। बृहदारण्यक उपनिषद् इसी ब्राह्मण का अन्तिम भाग है। कृष्णयजुर्वेद से सम्बद्ध तैत्तिरीय ब्राह्मण है, जो वास्तव में तैत्तिरीय संहिता का ही परिशिष्ट है। संहिता में कुछ अनुक्त विषय रह गए थे जिनकी पूर्ति इस ब्राह्मण में हुई है। इस वेद की अन्य संहिताओं (काठक, मैत्रायणी आदि) में तो ब्राह्मण ग्रन्थ अंग रूप से ही मिले हुए हैं। तैत्तिरीय ब्राह्मण में तीन अष्टक या काण्ड हैं, जिनमें अग्न्याधान, गवामयन, सौत्रामणि इत्यादि यज्ञों का वर्णन है।

    सामवेद से सम्बद्ध कई ब्राह्मण हैं, जैसे- ताण्ड्य (पञ्चविंश), षड्विंश, जैमिनीय इत्यादि। ताण्ड्य ब्राह्मण में प्राचीन दन्तकथाओं के साथ व्रात्यों (आर्य जाति से बहिष्कृत वर्ग) के पुनः वर्णप्रवेश का वर्णन है। षड्विंश ब्राह्मण में चमत्कार और शकुन से सम्बद्ध अद्भुत ब्राह्मण नामक एक अध्याय है। जैमिनीय ब्राह्मण में तीन भाग हैं तथा यह शतपथ के समान महत्त्वपूर्ण है। इसमें विज्ञान की भी सामग्री मिलती है। इनके अतिरिक्त सामवेद से सम्बद्ध दैवत, आर्षेय, सामविधान, वंश, छान्दोग्य, संहितोपनिषद् इत्यादि कई ब्राह्मण-ग्रन्थ हैं। अथर्ववेद से सम्बद्ध एक गोपथ ब्राह्मण मिलता है, जिसमें दो भाग हैं- पूर्व गोपथ और उत्तर गोपथ। इसमें सृष्टि, ब्रह्मा, ब्रह्मचर्य, गायत्री आदि की महिमा का वर्णन है। इसमें ओंकार के साथ त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु और शिव) का भी उल्लेख है। ब्राह्मण ग्रन्थों में सांस्कृतिक तत्त्वों का बीज भी प्राप्त होता है, जैसे- सृष्टि की व्याख्या, वर्णाश्रम-धर्म, स्त्री-महिमा, अतिथि सत्कार, यज्ञ का महत्त्व, सदाचार, विद्यावंश इत्यादि।

वेद एवं उससे संबंधित ब्रह्मण ग्रंथों की तालिका 

वेद

ब्राह्मण ग्रंथ

ऋग्वेद

ऐतरेय ब्राह्मण, कौषीतकि ब्राह्मण

यजुर्वेद

शतपथ ब्राह्मण (शुक्ल यजुर्वेद), तैत्तिरीय ब्राह्मण (कृष्ण यजुर्वेद)

सामवेद

पंचविंश ब्राह्मण, सप्तविंश ब्राह्मण, शांडिल्य ब्राह्मण, जैमिनीय ब्राह्मण

अथर्ववेद

गोपथ ब्राह्मण


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