उपनिषद् ग्रंथों का सामान्य परिचय

उपनिषद्

वैदिक साहित्य में प्रचार की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्व उपनिषदों का है। इनकी महत्ता दार्शनिक विचारों के कारण है, जिनसे ये देश-विदेश में लोकप्रिय हैं। दाराशिकोह ने इनका अनुवाद फारसी में किया था। पुनः यूरोपीय भाषाओं में भी इनका अनुवाद हुआ। फ्रांसीसी दार्शनिक शॉपेनहावर ने कहा था "उपनिषद् मेरे जीवन तथा मृत्यु दोनों के लिए सान्त्वनादायक हैं।"

प्राचीन उपनिषदों की संख्या 13 थी[1], किन्तु कालान्तर में इनकी संख्या शताधिक हो गई। परवर्ती उपनिषदों में विभिन्न मतावलम्बियों ने अपने धर्मों का सार प्रकट किया, किन्तु इनका सम्बन्ध वैदिक साहित्य से स्थापित नहीं हो सकता। वैदिक शाखाओं में मौलिक रूप से दार्शनिक चिन्तन के लिए विकसित उपनिषदों की गणना इस प्रकार की जाती है –

ऋग्वेद से सम्बद्ध

ऐतरेय तथा कौषीतकि।

कृष्णयजुर्वेद से सम्बद्ध

कठ, श्वेताश्वतर, मैत्रायणी (मैत्री) तथा तैत्तिरीय।

शुक्लयजुर्वेद से सम्बद्ध

ईश तथा बृहदारण्यक।

सामवेद से सम्बद्ध

छान्दोग्य तथा केन।

अथर्ववेद से सम्बद्ध

प्रश्न, मुण्डक तथा माण्डूक्य।

उपनिषदों में प्रायः संवादों के द्वारा तत्त्वज्ञान समझाया गया है। उनमें पुरुष के शरीर में प्राणादि की प्रतिष्ठा, आत्मा से सृष्टि की उत्पत्ति, विद्या और अविद्या का अन्तर, जगत् और आत्मा के स्वरूप, ब्रह्मतत्त्व इत्यादि विषय बहुत रोचक शैली में समझाए गए हैं। कहीं प्रश्नोत्तर के द्वारा, तो कहीं दृष्टान्तों के द्वारा इन विषयों का निरूपण हुआ है। उपनिषदों में गद्य और पद्य दोनों का प्रयोग है। बृहदारण्यक तथा छान्दोग्य बड़े उपनिषद् हैं शेष लघु हैं। माण्डूक्योपनिषद् में तो केवल 12 वाक्य हैं। ईशोपनिषद् में 18 मन्त्र हैं, जो यजुर्वेद के चालीसवें अध्याय के रूप में हैं। कठोपनिषद् में यम-नचिकेता के संवाद में आत्मा का स्वरूप बतलाया गया है। बृहदारण्यक में जनक-याज्ञवल्क्य के शास्त्रार्थ से ब्रह्म का निरूपण है। इस उपनिषद् में याज्ञवल्क्य की विदुषी पत्नी मैत्रेयी तथा उनसे शास्त्रार्थ करने वाली गार्गी की कथा आई है, जिससे उस युग की विदुषी स्त्रियों का पता लगता है।

उपनिषदों के आधार पर वेदान्त-दर्शन का विकास हुआ, जिसके फलस्वरूप ब्रह्मसूत्र की रचना बादरायण ने की। महाभारत के भीष्मपर्व में अवस्थित गीता भी उपनिषदों के दर्शन को ही पौराणिक शैली में प्रस्तुत करती है। उपनिषदों में परम सुख की प्राप्ति का मार्ग समझाया गया है। ब्रह्म के लक्षण हैं- सत्, चित् और आनन्द। इन तीनों की व्याख्या उपनिषदों में सम्यक् रूप से की गई है।

शंकराचार्य ने मुख्य 10 उपनिषदों पर भाष्य लिखकर अद्वैतवाद का प्रवर्तन किया। इसी प्रकार वेदान्त के विभिन्न सम्प्रदायों में उपनिषदों की अपने-अपने ढंग से व्याख्या की गई। उपनिषदों में दर्शन-शास्त्र के अमूल्य रत्न भरे पड़े हैं।

उपनिषद ग्रंथों की विषय-वस्तु

उपनिषद वैदिक साहित्य के अंतिम भाग हैं और इन्हें "वेदांत" भी कहा जाता है। इनका मुख्य उद्देश्य आध्यात्मिक ज्ञान, ब्रह्मविद्या, आत्मा और ब्रह्म के रहस्यों को स्पष्ट करना है। इनमें कर्मकांड की अपेक्षा ज्ञान, ध्यान और मोक्ष पर अधिक बल दिया गया है।

1.    ब्रह्म और आत्मा का ज्ञान

· उपनिषदों का सबसे प्रमुख विषय ब्रह्म (परम सत्य) और आत्मा (जीव) के संबंध की खोज है।

· "अहं ब्रह्मास्मि" (मैं ही ब्रह्म हूँ) और "तत्वमसि" (तू वही है) जैसे महावाक्य इस ज्ञान को स्पष्ट करते हैं।

2.    अद्वैतवाद (ब्रह्म और आत्मा की एकता)

·  शंकराचार्य ने उपनिषदों के आधार पर अद्वैत वेदांत की व्याख्या की, जिसमें बताया गया कि ब्रह्म और आत्मा अलग नहीं, बल्कि एक ही हैं।

· कुछ उपनिषद द्वैतवाद (ब्रह्म और जीव अलग हैं) और विशिष्टाद्वैत (जीव ब्रह्म का अंश है) की व्याख्या भी करते हैं।

3.    माया और संसार

· संसार (जगत) को माया कहा गया है, जो नित्य नहीं, बल्कि परिवर्तनशील है।

· उपनिषद सिखाते हैं कि इस माया से ऊपर उठकर ब्रह्मज्ञान प्राप्त करना ही जीवन का उद्देश्य है।

4.    मोक्ष (मुक्ति) का मार्ग

· उपनिषद कर्मकांड से हटकर ज्ञान और ध्यान के माध्यम से मोक्ष प्राप्त करने पर बल देते हैं।

· आत्मज्ञान से व्यक्ति पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त होकर ब्रह्म में लीन हो सकता है।

5.    ध्यान और योग

· ध्यान (मेडिटेशन) और प्राणायाम की विधियाँ समझाई गई हैं।

· "माण्डूक्य उपनिषद" में ओंकार (ॐ) की साधना को मोक्ष का मार्ग बताया गया है।

6.    नैतिकता और आत्मसंयम

· उपनिषद बताते हैं कि सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, और संतोष का पालन करने से आत्मज्ञान प्राप्त होता है।

· "ईशावास्य उपनिषद" कहता है कि संसार में रहते हुए भी लोभ-मोह से मुक्त रहना चाहिए।

7.    गूढ़ प्रतीकात्मक शिक्षाएँ

· उपनिषदों में कई कथाएँ और संवाद मिलते हैं, जो प्रतीकात्मक रूप से गहरी दार्शनिक सच्चाइयों को दर्शाते हैं।

· "छांदोग्य उपनिषद" में सत्यकाम और उद्दालक के संवाद आत्मज्ञान की राह दिखाते हैं।

प्रमुख उपनिषद और उनकी विषय-वस्तु:

उपनिषद

मुख्य विषय-वस्तु

ईशावास्य उपनिषद

सांसारिक वस्तुओं में आसक्ति न रखते हुए ब्रह्म का ध्यान

केन उपनिषद

आत्मा और इंद्रियों का संबंध, ब्रह्म की सत्ता

कठ उपनिषद

नचिकेता और यमराज का संवाद, आत्मा का ज्ञान

माण्डूक्य उपनिषद

ओंकार (ॐ) की महिमा, आत्मा की अवस्थाएँ

छांदोग्य उपनिषद

सत्यान्वेषण, तत्वमसि महावाक्य की व्याख्या

बृहदारण्यक उपनिषद

आत्मा, ब्रह्म, पुनर्जन्म और मोक्ष का रहस्य

तैत्तिरीय उपनिषद

आनन्दमय आत्मा, पंचकोश सिद्धांत

प्रश्न उपनिषद

जीवन, प्राण, ब्रह्म और आत्मा से जुड़े प्रश्नों के उत्तर


निष्कर्ष:

उपनिषद ज्ञान, ध्यान, और मोक्ष का मार्ग दिखाते हैं। ये वेदों के दार्शनिक सार हैं और हिंदू दर्शन के सभी प्रमुख संप्रदायों का आधार हैं। इनमें आत्मा और ब्रह्म की खोज, जीवन का उद्देश्य, और मोक्ष प्राप्ति के मार्गों की गहन व्याख्या की गई है।

 

 



[1] ईशावास्योपनिषद्, केनोपनिषद्, कठोपनिषद्, प्रश्नोपनिषद्, मुण्डकोपनिषद्, माण्डूक्योपनिषद्, तैत्तरीयोपनिषद्, ऐतरेयोपनिषद्, छान्दोग्योपनिषद्, बृहदारण्यकोपनिषद्, श्वेताश्वतरोपनिषद्, कौशितकी उपनिषद्, मैत्रायणी उपनिषद्।

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