आरण्यक ग्रंथों का सामान्य परिचय
आरण्यक
आरण्यकों की रचना वनों में हुई। वनों में रहकर चिन्तन करने वाले ऋषियों ने वैदिक कर्मकाण्डवाद से पृथक् रहकर उनमें प्रतीक खोजने की चेष्टा की। ब्राह्मणों के परिशिष्ट के रूप में विकसित आरण्यकों में यज्ञ के अंतर्गत अध्यात्मवाद का पल्लवन किया गया। कर्म की यही व्याख्या आगे चलकर मीमांसा-दर्शन, धर्मशास्त्र तथा कर्मवाद में विकसित हुई। वानप्रस्थों के यज्ञों का विधान करने के साथ-साथ उपनिषदों के ज्ञान-काण्ड की भूमिका भी आरण्यकों में तैयार की गई। प्राणविद्या का विवेचन आरण्यकों का वैशिष्ट्य है।
इस समय सात आरण्यक ग्रन्थ उपलब्ध हैं। ऋग्वेद के आरण्यकऐतरेय और कौषीतकि, ये दोनों इन्हीं नामों वाले ब्राह्मण-ग्रन्थों के अंग हैं। यजुर्वेद के बृहदारण्यक, तैत्तिरीयारण्यक तथा मैत्रायणीयारण्यक नामक तीन आरण्यक हैं। सामवेद के जैमिनीय और छान्दोग्य आरण्यक मिलते हैं। इन सभी में अपनी शाखाओं से सम्बद्ध कर्मों का विचार किया गया है, साथ ही संन्यास-धर्म का भी महत्त्व बतलाया गया है। बृहदारण्यक में कहा गया है कि इसे जानकर मनुष्य मुनि बन जाता है। आत्मा को जानकर वह ब्रह्मलोक की कामना करते हुए परिव्राजक बनकर पुत्र, वित्त और लोक की एषणा (इच्छा) का त्याग करता है तथा भिक्षाचर्या करता है।
आरण्यक ग्रंथों की विषय-वस्तु
आरण्यक ग्रंथ ब्राह्मण ग्रंथों और उपनिषदों के बीच की कड़ी हैं। इनका अध्ययन मुख्यतः वनों (आरण्य) में किया जाता था, इसलिए इन्हें "आरण्यक" कहा जाता है। इनका प्रमुख विषय ध्यान, तप, उपासना और आत्मज्ञान से संबंधित है।
आरण्यक ग्रंथों की विषयवस्तु
1. यज्ञों का प्रतीकात्मक अर्थ:
- ब्राह्मण ग्रंथों में यज्ञों की कर्मकांडीय व्याख्या होती है, लेकिन आरण्यकों में यज्ञों का आध्यात्मिक और दार्शनिक अर्थ बताया गया है।
- इनमें कर्मकांड से अधिक ध्यान और मानसिक यज्ञ पर जोर दिया गया है।
2. उपासना और ध्यान:
- आरण्यक ग्रंथों में उपासना विधियों का विस्तार से वर्णन किया गया है।
- सूर्योपासना, अग्नि उपासना, प्राणायाम, और ध्यान की प्रक्रियाओं पर जोर दिया गया है।
3. ब्रह्मविद्या और आत्मा का ज्ञान:
- इनमें आत्मा, ब्रह्म, जीव, और जगत के रहस्यों पर चिंतन किया गया है।
- आत्मा और ब्रह्म की एकता (अद्वैतवाद) की झलक इनमें मिलती है, जो आगे उपनिषदों में पूर्ण विकसित होती है।
4. संन्यास और मोक्ष मार्ग:
- इन ग्रंथों में गृहस्थ जीवन से आगे बढ़कर संन्यास और आत्मकल्याण पर विचार किया गया है।
- मोक्ष प्राप्ति के लिए सांसारिक कर्मों से मुक्ति की आवश्यकता बताई गई है।
5. प्राकृतिक तत्वों की साधना:
- आरण्यकों में प्रकृति और ब्रह्मांड से जुड़ी साधनाओं का उल्लेख मिलता है।
- सूर्य, चंद्र, वायु, अग्नि आदि तत्वों की साधना पर बल दिया गया है।
6. रहस्यमय और गूढ़ विचार:
- इन ग्रंथों में कई विषय गूढ़ और रहस्यमयी हैं, जो केवल उन लोगों को समझाए जाते थे, जो वनों में साधना करते थे।
निष्कर्ष:
आरण्यक ग्रंथों का मुख्य उद्देश्य मानव जीवन को आध्यात्मिक ऊँचाइयों तक ले जाना है। इनमें कर्मकांड से अधिक ध्यान, आत्मज्ञान, और मोक्ष पर बल दिया गया है, जिससे इनका स्वरूप उपनिषदों के निकट माना जाता है।
प्रमुख आरण्यक ग्रंथ और उनकी विशेषताएँ:
आरण्यक ग्रंथ |
मुख्य विषय-वस्तु |
ऐतरेय आरण्यक |
यज्ञों का प्रतीकात्मक महत्व, आत्मा और ब्रह्म का ज्ञान |
कौषीतकि आरण्यक |
ध्यान
और उपासना पद्धतियाँ |
तैत्तिरीय आरण्यक |
सूर्योपासना, यज्ञों का दार्शनिक पक्ष |
बृहदारण्यक |
अद्वैतवाद, आत्मा और ब्रह्म का तत्त्वज्ञान |
छांदोग्य आरण्यक |
ओमकार उपासना, ध्यान साधना |
जैमिनीय आरण्यक |
मंत्रों
की रहस्यमय व्याख्या |
आरण्यक ग्रंथों की विशेषताएँ:
- आरण्यक ग्रंथों में वनों (आरण्य) में अध्ययन व चिंतन का उल्लेख होता है।
- इनमें उपासना, ध्यान, ब्रह्मविद्या, आत्मज्ञान और रहस्यवादी विचार प्रमुख हैं।
- यह ब्राह्मण ग्रंथों और उपनिषदों के बीच की कड़ी माने जाते हैं।
वैदिक साहित्य में आरण्यक
ग्रंथों की सूची इस प्रकार है:
वेद |
आरण्यक ग्रंथ |
ऋग्वेद |
ऐतरेय आरण्यक, कौषीतकि
आरण्यक |
यजुर्वेद |
तैत्तिरीय आरण्यक, बृहदारण्यक
(शुक्ल यजुर्वेद) |
सामवेद |
छांदोग्य आरण्यक, जैमिनीय
आरण्यक |
अथर्ववेद |
कोई प्रमुख आरण्यक
उपलब्ध नहीं |
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