Friday, August 9, 2019

शिक्षण के उद्देश्य Teaching Objectives

शिक्षण के उद्देश्य Teaching Objectives

शिक्षण के उद्देश्य Teaching Objectives

     शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य शिक्षार्थियों में अधिगम उत्पन्न करना है। इस मुख्य उद्देश्य के अतिरिक्त शिक्षण के विभिन्न उद्देश्यों का वर्गीकरण इस है-

ब्लूम द्वारा शिक्षण का वर्गीकरण

  • ज्ञानात्मक ज्ञान क्षेत्र

  1. ज्ञान 
  2. बोध
  3. उपयोग
  4. विश्लेषण
  5. संश्लेषण
  6. मूल्यांकन

  • भावात्मक ज्ञान क्षेत्र

  1. आकलन
  2. आग्रहण
  3. प्रतिक्रिया
  4. संयोजित करना
  5. निरूपण

  • मनोसंचलित ज्ञान क्षेत्र

  1. हस्तकौशल
  2. प्रतिरूपता
  3. स्पष्ट अभिव्यक्ति
  4. परिशुद्धता
  5. प्राकृतिकरण

गैग्ने और ब्रिग्स के द्वारा वर्गीकरण

  1. ज्ञानात्मक रणनीतियाँ
  2. बौद्धिक कौशल
  3. मनोदृष्टि
  4. मौखिक सूचना
  5. संचालन तन्त्र और शारीरिक क्षमता
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शिक्षण की प्रकृति Nature of Teaching

शिक्षण की प्रकृति Nature of Teaching

शिक्षण की प्रकृति Nature of Teaching

     शिक्षण की प्रकृति सदैव सकारात्मक होती है। शिक्षण के माध्यम से छात्र में संज्ञानात्मक, भावात्मक और क्रियात्मक पक्षों का विकास किया जाता है। शिक्षण की प्रक्रिया में शिक्षक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। शिक्षक के ज्ञान के द्वारा ही शिक्षार्थी को शिक्षण की प्रकृति का बोध होता है। विभिन्न शिक्षण पद्धतियों के आधार पर शिक्षण की प्रकृति को निम्न प्रकार से समझा गया है-

  • शिक्षण कला एवं विज्ञान दोनों है। 
  • शिक्षण एक त्रिध्रुवीय प्रक्रिया है, जिसके तीन ध्रुव शिक्षक, शिक्षार्थी और पाठ्यक्रम होते है। 
  • शिक्षण एक उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है। 
  • शिक्षण एक अन्तःप्रक्रिया है। 
  • शिक्षण एक उपचरात्मक प्रक्रिया है। 
  • शिक्षण एक विकासात्मक प्रक्रिया है। 
  • शिक्षण एक भाषायी प्रक्रिया है।
    शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षार्थियों की पाठ्यचर्या तथा विषयवस्तु का विश्लेषण तार्किक आधार पर किया जाता है। शिक्षण की इस तार्किक प्रक्रिया का प्रारूप छः स्तरों में विभाजित किया जाता है, जो कि निम्नलिखित है-
  1. अन्वेषण 
  2. संलग्नता 
  3. विस्तार
  4. व्याख्या 
  5. मूल्यांकन 
  6. मानक 
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शिक्षण की अवधारणा Concept of Teaching

शिक्षण की अवधारणा Concept of Teaching

शिक्षण की अवधारणा Concept of Teaching

    शिक्षण एक ऐसी सतत् प्रक्रिया है, जिसमें बहुत से ऐसे कारक शामिल होते है जिनसे छात्र अपने ज्ञान और कौशल को अर्जित करता है। साधारणतः शिक्षण का अर्थ ‘शिक्षा लेना है’ जबकि इसका वास्तविक अर्थ ‘सीखना या सीख देना है’। शिक्षण एक सामाजिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा छात्र में मानवीय मूल्यों को विकस किया जाता है। वृहद रूप में शिक्षण वह सतत् प्रक्रिया है जिसमे छात्र या व्यक्ति औपचारिक या अनौपचारिक रूप से आजीवन सीखते-सिखाते रहता है। व्यवहारिक रूप में शिक्षण से अभिप्राय औपचारिक रूप से किसी शिक्षण संस्थान में शिक्षा ग्रहण करने से होता है। वर्तमान अधिगम प्रणाली में शिक्षा का अभिप्राय विद्यार्थियों में अधिगम के द्वारा प्रयोगात्मक विधियों द्वारा करके सिखाना है न की बलपूर्वक ज्ञान को छात्र के मस्तिष्क में बिठाना। शिक्षण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा शिक्षार्थी नवीन ज्ञान का अर्जन करता है। इस सन्दर्भ में अनेकों विद्वानों ने शिक्षण की परिभाषाएं दी है जिनमे से महत्वपूर्ण परिभाषाएं निम्नलिखित है -

  • रियान्स के अनुसार, “दूसरों को सीखाने, दिशा-निर्देश देने एवं उन्हें निर्देशित करने की प्रक्रिया ही शिक्षण है”।
  • गेज के अनुसार, “शिक्षण एक पारस्परिक प्रभाव है, जिसका उद्देश्य दूसरे व्यक्तियों के व्यवहारों में अपेक्षित परिवर्तन लाना है”।
  • बी ओ स्मिथ के अनुसार, “अधिगम को अभिप्रेरित करने वाली क्रिया शिक्षण है”। 
  • जॉन डीवी के अनुसार, “शिक्षण एक त्रिमुखी प्रक्रिया है”।
  • स्वामी विवेकानन्द के अनुसार, “शिक्षा मनुष्य में पहले से ही विराजमान पूर्णता का आविर्भाव है”।


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