शिक्षण की प्रकृति सदैव सकारात्मक होती है। शिक्षण के माध्यम से छात्र में संज्ञानात्मक, भावात्मक और क्रियात्मक पक्षों का विकास किया जाता है। शिक्षण की प्रक्रिया में शिक्षक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। शिक्षक के ज्ञान के द्वारा ही शिक्षार्थी को शिक्षण की प्रकृति का बोध होता है। विभिन्न शिक्षण पद्धतियों के आधार पर शिक्षण की प्रकृति को निम्न प्रकार से समझा गया है-
शिक्षण कला एवं विज्ञान दोनों है।
शिक्षण एक त्रिध्रुवीय प्रक्रिया है, जिसके तीन ध्रुव शिक्षक, शिक्षार्थी और पाठ्यक्रम होते है।
शिक्षण एक उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है।
शिक्षण एक अन्तःप्रक्रिया है।
शिक्षण एक उपचरात्मक प्रक्रिया है।
शिक्षण एक विकासात्मक प्रक्रिया है।
शिक्षण एक भाषायी प्रक्रिया है।
शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षार्थियों की पाठ्यचर्या तथा विषयवस्तु का विश्लेषण तार्किक आधार पर किया जाता है। शिक्षण की इस तार्किक प्रक्रिया का प्रारूप छः स्तरों में विभाजित किया जाता है, जो कि निम्नलिखित है-
शिक्षण एक ऐसी सतत् प्रक्रिया है, जिसमें बहुत से ऐसे कारक शामिल होते है जिनसे छात्र अपने ज्ञान और कौशल को अर्जित करता है। साधारणतः शिक्षण का अर्थ ‘शिक्षा लेना है’ जबकि इसका वास्तविक अर्थ ‘सीखना या सीख देना है’। शिक्षण एक सामाजिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा छात्र में मानवीय मूल्यों को विकस किया जाता है। वृहद रूप में शिक्षण वह सतत् प्रक्रिया है जिसमे छात्र या व्यक्ति औपचारिक या अनौपचारिक रूप से आजीवन सीखते-सिखाते रहता है। व्यवहारिक रूप में शिक्षण से अभिप्राय औपचारिक रूप से किसी शिक्षण संस्थान में शिक्षा ग्रहण करने से होता है। वर्तमान अधिगम प्रणाली में शिक्षा का अभिप्राय विद्यार्थियों में अधिगम के द्वारा प्रयोगात्मक विधियों द्वारा करके सिखाना है न की बलपूर्वक ज्ञान को छात्र के मस्तिष्क में बिठाना। शिक्षण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा शिक्षार्थी नवीन ज्ञान का अर्जन करता है। इस सन्दर्भ में अनेकों विद्वानों ने शिक्षण की परिभाषाएं दी है जिनमे से महत्वपूर्ण परिभाषाएं निम्नलिखित है -
रियान्स के अनुसार,“दूसरों को सीखाने, दिशा-निर्देश देने एवं उन्हें निर्देशित करने की प्रक्रिया ही शिक्षण है”।
गेज के अनुसार,“शिक्षण एक पारस्परिक प्रभाव है, जिसका उद्देश्य दूसरे व्यक्तियों के व्यवहारों में अपेक्षित परिवर्तन लाना है”।
बी ओ स्मिथ के अनुसार,“अधिगम को अभिप्रेरित करने वाली क्रिया शिक्षण है”।
जॉन डीवी के अनुसार,“शिक्षण एक त्रिमुखी प्रक्रिया है”।
स्वामी विवेकानन्द के अनुसार,“शिक्षा मनुष्य में पहले से ही विराजमान पूर्णता का आविर्भाव है”।