वैदिक संस्कार एवं उनकी समाज में भूमिका
  भूमिका  वैदिक संस्कृति में संस्कारों का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। संस्कार शब्द का अर्थ होता है – परिशोधन , शुद्धिकरण और परिपूर्णता की ओर अग्रसर होना। वैदिक काल से ही भारतीय जीवन में संस्कारों का पालन किया जाता रहा है , जो व्यक्ति के मानसिक , शारीरिक , सामाजिक और आध्यात्मिक विकास में सहायक होते हैं। इन संस्कारों का उद्देश्य मानव जीवन को उच्च आदर्शों की ओर प्रेरित करना और समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना करना है।   वैदिक संस्कारों की संकल्पना  संस्कार वे धार्मिक और आध्यात्मिक अनुष्ठान होते हैं जो व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक उसके जीवन को पवित्र और व्यवस्थित बनाते हैं। वैदिक परंपरा में कुल सोलह संस्कारों (षोडश संस्कार) का वर्णन किया गया है , जिनमें गर्भाधान , पुंसवन , सीमंतोन्नयन , जातकर्म , नामकरण , अन्नप्राशन , चूड़ाकर्म , उपनयन , वेदारंभ , केशान्त , समावर्तन , विवाह , वानप्रस्थ , संन्यास और अंत्येष्टि प्रमुख हैं। ये संस्कार व्यक्ति के भौतिक और आध्यात्मिक उन्नयन के लिए आवश्यक माने गए हैं।   वैदिक संस्कारों की भूमिका:   1.     व्यक्तिगत विकास:  संस्कार व्यक्ति को ...