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वैदिक साहित्य के अन्तर्गत वेदों का परिचय

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वैदिक साहित्य: भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर प्रस्तावना भारत का समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास वेदों में निहित है। वैदिक साहित्य भारतीय जीवन , धर्म , दर्शन और विज्ञान का मूल स्रोत है। वेदों को ईश्वर प्रदत्त ज्ञान माना जाता है , जो आदि काल से सनातन परंपरा का आधार रहे हैं। इस लेख में हम चार वेदों – ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद और अथर्ववेद – का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं। 1. ऋग्वेद: प्राचीनतम ज्ञान का भंडार ऋग्वेद संसार का सबसे प्राचीन ग्रंथ माना जाता है। इसमें कुल 10 मण्डल , 1028 सूक्त और 10,580 ऋचाएँ हैं। इसमें मुख्य रूप से: देवताओं की स्तुति (इन्द्र , अग्नि , वरुण , सूर्य और उषा) दार्शनिक विचार (पुरुष-सूक्त और नासदीय-सूक्त) समाज व्यवस्था और आर्यों के जीवन का वर्णन ऋग्वेद में निहित ऋचाएँ आध्यात्मिक चेतना और ज्ञान का मार्ग प्रशस्त करती हैं। 2. यजुर्वेद: यज्ञ परंपरा का आधार यजुर्वेद मुख्य रूप से यज्ञ और अनुष्ठानों से संबंधित है। यह दो भागों में विभाजित है: कृष्ण यजुर्वेद : मंत्रों के साथ उनकी व्याख्या भी दी गई है। प्रमुख शाखाएँ: तैत्तिरीय , मैत्...

वैदिक साहित्य का परिचय

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    भारतीय संस्कृति का मूलाधार वैदिक साहित्य है, जो प्राचीन भारत के पश्चिमोत्तर क्षेत्र, विशेष रूप से सप्तसिंधु प्रदेश में विकसित हुआ। इस कालखंड में जो साहित्यिक अभिव्यक्ति मौखिक रूप से प्रसारित हुई, उसे वैदिक संस्कृत में संरक्षित किया गया। वैदिक साहित्य न केवल धार्मिक अनुष्ठानों और दार्शनिक चिंतन का प्रतिबिंब है, बल्कि इसमें तत्कालीन समाज, संस्कृति, चिकित्सा, राजनीति, शिक्षा, विवाह, दान आदि लौकिक विषयों का भी व्यापक विवरण मिलता है। इसी आधार पर भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक परंपरा का मूलाधार वैदिक साहित्य है।  वेदों का उद्गम और द्रष्टा ऋषि      वैदिक ज्ञान के प्रसार का माध्यम वैदिक संस्कृत रही है, जिसे देववाणी भी कहा जाता है। वैदिक साहित्य का उद्गम अत्यंत प्राचीन काल में हुआ, परंतु कुछ आधुनिक विद्वान 6000 ई.पू. से 800 ई.पू. के बीच मानते हैं। वैदिक धर्मशास्त्रों के अनुसार, वेद अपौरुषेय (मानव-रचित नहीं) और नित्य (सनातन) माने जाते हैं। चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा ने इन्हें अपने अंतःकरण में ऋषि-दृष्टि के माध्यम से अनुभव किया। यह अनुभूत ज्ञान ब्रह्म...