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वैदिक षड्दर्शन (षड्दर्शन) एवं उनके प्रमुख सिद्धांतों का सामान्य परिचय

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वैदिक षड्दर्शन (षड्दर्शन) का सामान्य परिचय भारतीय दर्शन में “ षड्दर्शन ” का तात्पर्य है – छः प्रमुख वैदिक दर्शनों से , जो वेदों पर आधारित हैं और जीवन , ब्रह्मांड , आत्मा , मोक्ष आदि विषयों की दार्शनिक व्याख्या करते हैं। ये दर्शनों का उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति और सत्य का बौद्धिक अन्वेषण है। 1. न्याय दर्शन ( गौतम मुनि ) प्रवर्तक : महर्षि गौतम मुख्य विषय : तर्क , प्रमाण (ज्ञान के साधन) , न्याय और युक्ति विशेषता : यह दर्शन तर्क और प्रमाण के आधार पर सत्य की खोज करता है। प्रमाणों की संख्या : 4 ( प्रत्यक्ष , अनुमान , उपमान , शब्द) 2. वैशेषिक दर्शन ( महर्षि कणाद ) प्रवर्तक : महर्षि कणाद मुख्य विषय : पदार्थों का विश्लेषण , गुण और द्रव्य का वर्गीकरण विशेषता : यह दर्शन परमाणुवाद और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को प्रस्तुत करता है। न्याय दर्शन से मिलकर यह तर्कशास्त्र का आधार बनाता है। 3. सांख्य दर्शन ( कपिल मुनि ) प्रवर्तक : महर्षि कपिल मुख्य विषय : प्रकृति और पुरुष का द्वैत सिद्धांत विशेषता : यह दर्शन 25 तत्त्वों का वर्णन करता है औ...

स्वामी दयानन्द सरस्वती एवं स्वामी श्रद्धानंद जी का शिक्षा दर्शन

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स्वामी दयानन्द सरस्वती का शिक्षा दर्शन स्वामी दयानन्द सरस्वती ( 1824–1883) एक महान समाज-सुधारक , चिंतक और आर्य समाज के संस्थापक थे। उनका शिक्षा दर्शन वैदिक सिद्धांतों पर आधारित था , जिसमें नैतिकता , राष्ट्रप्रेम , सत्य , धर्म और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का समन्वय पाया जाता है। उनके शिक्षा-दर्शन का उद्देश्य एक ऐसा समाज निर्माण करना था जो ज्ञान , विवेक और नैतिकता से परिपूर्ण हो। मुख्य विशेषताएँ: 1. वैदिक शिक्षा पर बल : स्वामीजी शिक्षा के लिए वेदों को परम स्रोत मानते थे। वे चाहते थे कि शिक्षा का आधार वेदों का ज्ञान , यज्ञ , तप और ब्रह्मचर्य हो। 2. चरित्र निर्माण : शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य चरित्र निर्माण था। उन्होंने कहा – “ चरित्रहीन व्यक्ति शिक्षित नहीं , अशिक्षित है।” 3. स्त्री शिक्षा का समर्थन : स्वामी दयानन्द नारी शिक्षा के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने कहा कि स्त्रियाँ भी वेदाध्ययन की समान अधिकारी हैं। 4. धार्मिक सहिष्णुता व वैज्ञानिक दृष्टिकोण : शिक्षा में तर्क और अनुभव को महत्त्व देते थे। अंधविश्वास , रूढ़ियों और ...

प्राचीन वैदिक शिक्षा व्यवस्था का सामान्य परिचय

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प्राचीन वैदिक शिक्षा व्यवस्था का सामान्य परिचय: प्राचीन भारत की वैदिक शिक्षा व्यवस्था एक उत्कृष्ट , नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों पर आधारित प्रणाली थी , जिसका उद्देश्य केवल ज्ञान प्राप्ति नहीं , बल्कि व्यक्ति के समग्र विकास — शारीरिक , मानसिक , बौद्धिक और आत्मिक — को सुनिश्चित करना था। 1. शिक्षा का उद्देश्य: आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति। सत्य , धर्म , ब्रह्मचर्य , अनुशासन और सेवा जैसे मूल्यों का विकास। जीवन की चार पुरुषार्थों (धर्म , अर्थ , काम , मोक्ष) की सिद्धि के लिए तैयारी। 2. मुख्य शिक्षण संस्थान: गुरुकुल प्रणाली : विद्यार्थी गुरु के आश्रम में रहकर शिक्षा प्राप्त करते थे। शिक्षा पूर्णतः नि:शुल्क होती थी और विद्यार्थी गुरु की सेवा करते हुए ज्ञान अर्जित करते थे। प्रमुख गुरुकुल – तक्षशिला , नालंदा , वल्लभी , विद्यापीठ , उज्जयिनी आदि। 3. शिक्षा का माध्यम और विषय: भाषा : संस्कृत विषय : वेद , उपनिषद , व्याकरण , गणित , खगोलशास्त्र , आयुर्वेद , संगीत , राजनीति , युद्ध-कला , धर्मशास्त्र आदि। 4. शिक्षण विधि: मौखिक परंपरा (श्रुति और स्मृत...