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योग दर्शन / पातञ्जल दर्शन / सेश्वर सांख्य

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योग दर्शन का सामान्य परिचय         ' योग दर्शन '  एक अत्यन्त व्यावहारिक दर्शन है। इस दर्शन का मुख्य लक्ष्य मनुष्य को वह मार्ग दिखाना है ,  जिस पर चलकर वह मोक्ष को प्राप्त कर सके। योग दर्शन तत्त्वमीमांसीय प्रश्नों में न उलझकर मुख्यत :  मोक्ष प्राप्ति के उपायों  को बताने वाले दर्शन की प्रस्तुति करता है। तत्त्वमीमांसा की आवश्यकता पड़ने पर योग ,  सांख्य दर्शन को प्रस्तुत करता है। यही कारण है कि सांख्य के साथ योग का नाम जुड़ा हुआ है।      योग दर्शन के प्रवर्तक आचार्य महर्षि पतंजलि हैं। कहा जाता है कि वैसे योगशास्त्र अनादि है ,  किन्तु योग में संस्कर्ता होने के कारण उन्हें योगशास्त्र का प्रवर्तक माना गया है। उनके द्वारा रचित योगसूत्र उनका प्राचीन ग्रन्थ है ,  जिस पर यह दर्शन आधारित है। पतंजलि ने इस ग्रन्थ में योग को व्यवस्थित ढंग से प्रतिपादित किया है। योगसूत्र चार पादों में विभक्त है - समाधिपाद , साधनापाद , विभूतिपाद और कैवल्यपाद।     समाधिपाद में योग का स्वरूप ,  उद्देश्य एवं लक्षण ,  साधनापाद में...

सांख्य दर्शन / सांख्य सूत्र दर्शन / कपिल मुनि का दर्शन / अंक दर्शन

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सांख्य दर्शन का सामान्य परिचय एवं उसका साहित्य      सांख्य दर्शन भारतीय दर्शन की चिन्तन परम्परा में प्राचीनतम दर्शन है। इस दर्शन का उल्लेख पुराणों , महाभारत , रामायण , श्रुति एवं स्मृति में है।गीता में भी सांख्य एवं योग दर्शन का उल्लेख मिलता है।अन्य दर्शनों की तुलना में यह दर्शन सर्वाधिक प्रभावशाली है सांख्य के बारे में उक्ति है कि “नास्ति सांख्य समं ज्ञानं ' अर्थात् सांख्य के समान और कोई ज्ञान नहीं है।      सांख्य दर्शन के प्रणेता महर्षि कपिल हैं। सांख्य दर्शन का मूल ग्रन्थ महर्षि कपिल का ' तत्त्व समास ' है।फिर उन्होंने सांख्यमत को विस्तारपूर्वक समझाने की दृष्टि से ' सांख्य सूत्र ' नामक विशद् ग्रन्थ की रचना की।वर्तमान में ईश्वरकृष्ण की ' सांख्यकारिका ' ही उपलब्ध है। ईश्वरकृष्ण आचार्य पंचशिख के शिष्य थे।सांख्यकारिका ही सांख्य दर्शन का आधार है।      सांख्य का शाब्दिक अर्थ संख्या से है।विद्वानों के विचार हैं कि इस दर्शन में ऐसे तत्त्वों की संख्या गिनी जाती है , जिनका ज्ञान हमें मोक्ष दिलाने वाला है , इसलिए इसे सांख्य कहते हैं। सांख्य का ए...