क्रियात्मक शोध Action Research
क्रियात्मक शोध शब्द का प्रयोग प्रथम बार ‘कुर्त लेविन’ (Kurt Lewin) ने 1940 में किया था। जिसकी परिभाषा करते हुए हल्येस (Halsey) लिखते है कि “क्रियात्मक अनुसंधान वास्तविक संसार की कार्य पद्धति में हस्तक्षेप
है और ऐसे हस्तक्षेप के क्या प्रभाव रहे, उनकी गहन समीक्षा है”। क्रियात्मक शोध सैद्धांतिक
ज्ञान की खोज पर बल न देकर व्यवसायिक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है। इसी को
परिभाषित करते हुए एस. एम. कोर कहते है- “क्रियात्मक अनुसंधान एक प्रक्रिया है जिसके
द्वारा एक व्यवसायी अपने निर्णय में निर्देशित होने के लिए, सुधार लाने एवं मूल्यांकन
के लिए अपनी समस्याओं का वैज्ञानिक ढंग से अनुभव करता है”। इस प्रकार मुख्य रूप से
क्रियात्मक शोध तीन प्रकार की समस्या के लिए उपयुक्त होता है-
- तत्काल समस्या के समाधान के लिए
- पहले से ही चल रहे किसी अनुसंधान की चिंत्तनशील समीक्षा के लिए
- समस्या का समाधान करने वाली प्रक्रियाओं में सुधार के लिए
क्रियात्मक शोध की प्रक्रिया
क्रियात्मक शोध एक चक्रीय प्रक्रिया है जिसे क्रिया चक्र या अन्वेषण
चक्र भी कहते है। क्रियात्मक शोध का चक्रीय क्रम निम्नलिखित है-
क्रियात्मक शोध के चरण
क्रियात्मक शोध की प्रक्रिया 6 चरणों में पूर्ण होती है-
- समस्या का चयन
- समस्या का मूल्यांकन
- परिकल्पनाओं का निर्माण
- प्रदत्त संकलन
- परिकल्पनाओ का परीक्षण
- निष्कर्ष एवं सुझाव प्राप्ति
क्रियात्मक शोध की विशेषताएं
- इस शोध के द्वारा शैक्षक
समस्याओं का समाधान किया जाता है।
- इस शोध के अन्तर्गत व्यवहारिक पक्षों पर अधिक बल दिया जाता है।
- यह शोध किसी संस्था या समुदाय तक ही सीमित राहत है।
- यह शोध तात्कालिक समस्याओं के समाधान के लिए उपयुक्त है।
- यह शोध विकासात्मक अनुसंधान को बढ़ावा देता है।
क्रियात्मक शोध के उद्देश्य
- शैक्षणिक संस्थानों में उत्पन्न समस्याओं का समाधान करना
- छात्रों के निष्पादन स्तर में होने वाली समस्याओं का समाधान करना
- विद्यालय की शिक्षण प्रणाली एवं वातावरण में सुधार करना
- विद्यालयों में कार्यरत कर्मचारियों का निष्पादन स्तर उच्च करना